जन जन के मसीहा

जन जन के मसीहा

करो करोड़ दिवाली राज प्रभुवर गण में,
मिले शासना भक्तों को क्षण-क्षण में।
उत्तम साधक, उत्तम चिंतक और वक्ता,
जिनवर वाणी से श्रोता कभी न थकता ।।
जो गुरु को तन-मन से नित उठकर ध्याता,
वो शिव पुर का है मार्ग स्वतः ही पाता।
ये श्रद्धा का दीपक कभी नहीं बुझ पाए,
बस शाम सवेरे यही भावना भाए।।
जन-जन के है मसीहा मेरे स्वामी,
भक्त जनों के प्रभुवर अंतर्यामी।
नियमित दिनचर्या प्रभुवर है विलक्षण,
शरणागत आकर हो जाता है धन-धन।।
'एगो में सासओ' में शाश्वत रहते,
है ध्यान की गंगा में विभुवर नित बहते।
करते सुश्रम कल्याण देखो स्व-पर,
प्रभु का सर पर कर लगता है जी सुखकर।।
समवसरण सा लगे नजारा प्यारा,
गूंजे है ज्योति चरण का देखो नारा।
है शांतिदूत सम्पूर्ण विश्व के ईश्वर,
हम धन्य हो गए ऐसे प्रभु को पाकर।।