ज्योतिचरण तेरी किरणों ने
ज्योतिचरण तेरी किरणों ने सागर का सम्मान किया है।
उछल-उछल कर लहरों ने तेरा गौरव गान किया है।।
तूं धरती का सूर्य अनूठा, नभ से तेरा गहरा नाता।
इच्छाओं के अम्बर को भी, संयम का तूं पाठ पढ़ाता।
कर संधान सत्य का तुमने, भू को नव अवदान दिया है।
ज्योतिचरण तेरी किरणों ने, सागर का सम्मान किया है।।
चाह न यश की दिखती किंचित्, खुद सम्मान द्वार पर आते।
सुख-दु:ख को सम मान लिया तो, लाभ-अलाभ ना तुम्हें सताते।
सजग साधना-प्रहरी हो यह, जग ने भी पहचान लिया है।
ज्योतिचरण तेरी किरणों ने सागर का सम्मान किया है।।
स्वयं बने आगम अगम तुम, गहन ज्ञान के अविचल आकार।
प्रभु भक्ति में गौतम गणधर, मीरां, सुर, तुलसी, रत्नाकर।
परमाराधक रत्नत्रयी के 'अवधूत' हमने मान लिया है।
ज्योतिचरण तेरी किरणों ने सागर का सम्मान किया है।।