: अभिवंदना स्वर :

: अभिवंदना स्वर :

अभिनन्दन उजले प्रभात का, नन्दनवन के पारिजात का।।
आरोहण आस्था तरंग पर, सदा निछावर एक रंग पर,
आंच न आए कभी संघ पर, वीतरागता अंग-अंग पर।
गण-गौरव से अभिस्नात का, अभिनन्दन उजले प्रभात का।।
जीवन की हर भोर सुहानी, चरणों में हो सतत रवानी,
रोक न पाए आंधी-पानी, जागृत हो ताकत रूहानी।
पुष्प सुगन्धित अनाघ्रात का, अभिनन्दन उजले प्रभात का।।
जैनागम के अगम पुजारी, वैश्वानर बन दो चिनगारी,
नए सृजन की कर तैयारी, भावी पीढ़ी हो संस्कारी।
पौरूष के निर्मल प्रपात का, अभिनन्दन उजले प्रभात का।।
तुम तुलसी के नए छन्द हो, महाप्रज्ञ-मन की पसन्द हो,
पहली वर्षा-सी सुगंध हो, संघपुरूष के शुभ प्रबंध हो।
नूतन युग के सूत्रपात का, अभिनन्दन उजले प्रभात का।।