: अभिवंदना स्वर :
श्री संत शिरोमणि महाश्रमण का सुन्दर सुखकर साया है।
दीक्षा कल्याण महोत्सव का शुभ पावन अवसर आया है।।
कालू जप किया गहन मंथन, निर्णय जग के तोडूं बंधन।
तत्काल त्याग कर शादी का, वैराग्य प्रवर प्रकटाया है।।
द्वादश वय बन गए संन्यासी, तेजस्वी संयम अभ्यासी।
साधु हो महाश्रमण जैसा, गुरु तुलसी ने फरमाया है।।
रत्नत्रय के तुम आराधक, समता के श्रेष्ठ महासाधक।
उपशम है सार साधुता का, वच सच करके दिखलाया है।।
मंत्री मुनिवर द्वारा दीक्षित, गुरुद्वय से शिक्षित संपोषित।
श्री महाप्रज्ञ विभु ने गण का दायित्व सकल संभलाया है।।
उत्कृष्ट आन्तरिक तप तेरा, है प्रबल बाह्य तप का घेरा।
गुरुवर मुख महातपस्वी का, महिमामंडित वर पाया है।।
सम शम श्रम से वर श्रमण बनें, श्रमणों में भी महाश्रमण बने।
परमार्थ समर्पित अर्धसदी, संयम सुरतरु सरसाया है।।
लाखों-लाखों के कल्याणी, आनन्द शांति सुख वरदानी।
युग-युग युग का कल्याण करो, हर भक्त हृदय ने गाया है।।
लय - महावीर तुम्हारे चरणों में