शुद्ध, ज्योतिर्मय, निरामय रूप को पाने का करें प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण
राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने प्राप्त किया आचार्य श्री महाश्रमण जी का आशीर्वाद
छत्रपति संभाजीनगर प्रवास के अिन्तम िदन अध्यात्म जगत के महासूर्य आचार्य श्री महाश्रमणजी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि समय तीन प्रकार का होता है भूत, भविष्य और वर्तमान। जो बीत चुका वह भूत हो गया, जो अब तक आया नहीं वह अनागत है और अभी जो समय बीत रहा है वह वर्तमान है। जैन दर्शन में कहा गया कि हम एक आंख का निमेष करें इतने में संभवतः असंख्य समय बीत जाते हैं। सामान्यतया समय का मतलब है काल। जो समय बीत गया वो तो चला गया, भविष्य में जो समय है उसके लिए हम सतर्क हो सकते हैं कि हम उसका बढ़िया उपयोग करें। वर्तमान में जो समय है उसका भी हम अच्छा उपयोग करें। आदमी कई बार आलस्य कर लेता है। करणीय कार्य को आगे के लिए छोड़ देता है। अच्छा काम, धर्म का काम, कल्याणकारी काम आज किया जा सकता है उसे आलस्य के कारण कल पर छोड़ देना उचित नहीं है। उठने के बाद प्रमाद नहीं करना चाहिए।
कल पर कार्य छोड़ने का विचार तीन आदमी कर सकते हैं। पहला- किसी की मौत के साथ दोस्ती हो जाये, दूसरा आदमी कहता कि मैं दौड़ने में तेज हूं, मौत मुझे पकड़ नहीं पाएगी। तीसरा आदमी कहता है कि मैं तो कभी मरूंगा ही नहीं, मैं तो अमर हूं। पर ये सब संभव नहीं हो सकता। तीर्थंकर भी एक दिन निर्वाण को प्राप्त होते हैं, फिर दूसरों की तो बात ही क्या हो सकती है। मंत्री मुनि श्री सुमेरमल जी स्वामी जी का पांच वर्ष पहले कल के दिन प्रयाण हो गया था। वे मंत्री मुनि के स्थान पर थे, बहुश्रुत परिषद के संयोजक थे, हमारे धर्मसंघ के वरिष्ठ संत थे, जीवन के नवमें दशक में उन्होंने अंतिम श्वास लिया था।
जो अच्छा कार्य आज किया जा सकता है, उसको आलस्यवश कल पर छोड़ देना हितावह नहीं है। कल का क्या भरोसा? मृत्यु होनी निश्चित है, पर कब होगी वह अनिश्चित है। मृत्यु का पहले पता नहीं चलना एक दृष्टि से सृष्टि की अच्छी बात है, अन्यथा कायरता या कमजोरी भी आ सकती है। काल और कल अज्ञात रहते हैं। यदि विरक्ति आ जाती है तो प्रवज्या की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। हम समय का बढ़िया उपयोग करने का प्रयास करें। संसार में बार-बार जन्म-मरण का क्रम चलता रहता है। वह समय महान होगा जब हम जन्म-मरण की श्रृंखला से हमेशा के लिए मुक्त हो जाएंगे, सिद्धत्व को प्राप्त हो जाएंगे। सिद्ध अवस्था को प्राप्त करने के लिए हमें शुद्धावस्था की ओर आगे बढ़ना होगा। शुद्ध, ज्योतिर्मय, निरामय रूप को पाने का प्रयास करें। सम्यक ज्ञान, दर्शन, चारित्र की आराधना करने से वह शुद्ध, ज्योतिर्मय, निरामय स्वरूप प्राप्त हो सकेगा। हम समता की साधना कर साम्य योगी बन जाएं तो हमें सिद्धरूप प्राप्त हो सकेगा।
समय के प्रवाह का हम अच्छा उपयोग करें। दुनिया का बढ़िया आदमी वह है जिसका समय बढ़िया बीतता हो। हमें यह मानव जीवन प्राप्त है। कल अनेकों लोगों ने वर्षीतप की सम्पन्नता की। मनुष्य जीवन में तपस्या का क्रम चलाना भी अच्छा है। जितना हो सके जप, तप, स्वाध्याय, ध्यान से निर्जरा करने का प्रयास करें। वर्षीतप एक अच्छा अनुष्ठान है, इसके साथ नियमों का पालन करने से तपस्या और महिमामंडित हो जाती है। हम समय का बढ़िया उपयोग कर बढ़िया आदमी बनने का प्रयास करें। पूज्य प्रवर के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीवर्या संबुद्घयशाजी ने कहा कि हमें संसारी आत्मा से मुक्त हो परमात्मा बनना है। संसारी आत्मा बंद कमरे के समान है, सिद्ध आत्मा खुले कमरे के समान है।
हमें कर्मों से मुक्त बनना है। सत्पुरुषों के मार्गदर्शन से हम मुक्त बन सकते हैं। पूज्यवर के प्रवचनों से हमें ऐसे रास्ते मिलते हैं, जिनसे हम बंधे कर्मों से मुक्त हो लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। पूज्य प्रवर के दर्शनार्थ पहुंचे राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने कहा कि आचार्य श्री महाश्रमण जी का दर्शन कर में लाभान्वित हुआ हूं। संतों ने अच्छा मार्ग दिखाकर इस राष्ट्र को मजबूत बनाने का काम किया है।
आपने समाज को दिशा दी है, आपने सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की जो बात बतायी है, उससे राष्ट्र का विकास हो सकता है। जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित एवं आचार्य श्री महाप्रज्ञजी द्वारा लिखित ग्रन्थ 'जैन योग' का अंग्रेजी भाषा का संस्करण मुख्यमंत्री द्वारा पूज्य प्रवर को समर्पित कर लोकार्पित किया गया। साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभा जी ने इस संदर्भ में कहा कि आचार्य प्रवर ने आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के साहित्य को वांग्मय के रूप में संपादित करने का स्वप्न देखा था। आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी की 300 पुस्तकों को संपादित कर 121 पुस्तकों का वांग्मय प्रकाशित किया गया था। तब आचार्य प्रवर ने आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी की 21 किताबों का अंग्रेजी में अनुवाद करने का स्वप्न देखा था। आज जैन योग के संदर्भ में पुस्तक पूज्य चरणों में उपरित हुई है।
पूज्य प्रवर की अभिवंदना में तेरापंथ युवक परिषद, तेरापंथ महिला मंडल, तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम, तेरापंथ किशोर मंडल, तेरापंथ कन्या मंडल एवं ज्ञानशाला के सदस्यों ने गीत का संगान किया। सभा अध्यक्ष कौशिक सुराणा, अणुव्रत समिति से रूपा धोका एवं तेयुप अध्यक्ष अंकुर लूणिया ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। किशोर मंडल व ज्ञानशाला की प्रस्तुति हुई। मुनि चिन्मय कुमार जी ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि श्री दिनेशकुमार जी ने किया।