गुरु सन्निधि के उजले पल

गुरु सन्निधि के उजले पल

आचार्य प्रवर का 03.04.2024 को पूना से विहार हो गया, किन्तु साध्वीप्रमुखाश्री जी आदि 16 साध्वियों का प्रवास पूना में ही हो रहा था। चूंकि 25 मार्च 2024 को पिंपरी चिंचवड़ में साध्वीप्रमुखाश्री जी के पैर में तकलीफ हो गई थी। 
4 अप्रैल को प्रातः वंदना के समय पूज्य प्रवर ने फरमाया - साध्वीवर्या! हम तुमको अवकाश नहीं दे रहे हैं, किन्तु अब तुम मध्यान्ह में ठिकाने में रहा करो। तब वहां उपस्थित साध्वियों ने निवेदन किया - गुरुदेव! क्या हम मध्यान्ह सेवा उपासना में आ सकते हैं? 
गुरुदेव - साध्वियां चाहें तो सेवा में आ सकती है। 
साध्वियों ने लाभ उठाया। प्रायः हर रोज पूज्य प्रवर कुछ समय अपना काम करने के बाद साध्वियों को कुछ न कुछ पुछवाते, चर्चावार्ता करवाते या किसी विषय को, आगम या अन्य ग्रन्थों में खोजने के लिए फरमाते। पूज्य प्रवर की अलग-अलग विषयों पर चर्चा चली जैसे- •
lईश्वरवाद की अवधारणा lपुण्यानुबंधी पुण्य आदि चार भांगे 
lमूर्तिपूजा की अवधारणा lद्रव्यपूजा-भावपूजा 
lद्रव्य, स्थापना, नाम व भाव निक्षेप •lपुण्य-निर्जरा की चर्चा
•lआचार्यो के छत्तीस गुण lतेरापंथ का परिचय व सिद्धांत 
•lज्ञानयोग, भक्तियोग, कर्मयोग lमुख्यमुनिश्री द्वारा गुणस्थानों पर 
   चर्चा ... आदि।
इस प्रकार कई विषयों पर जिज्ञासा समाधान चला। 5 मई को आचार्य प्रवर के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए साध्वियों ने मध्यान्ह सेवा में एक गीत का संगान किया। गीत के बोल इस प्रकार हैं - 
समता के सागर से पाए नित मोती उजले, 
सुन्दर शिक्षाओं को पाकर मन के सुमन खिले।। 
1. साध्वीप्रमुखाश्रीजी बिन हम कैसे सेवा कर पाएं? 
साध्वीवर्या रहे ठिकाने सतियों का मन मचलाए। 
मिली मितावग्रह में सन्निधि शत-शत नमन करें।।
2. मई अप्रैल महीना जग में गरमी का अहसास है, 
लेकिन हम सतियों ने पाया सावन-सा सुखवास है।  
ठण्डी-ठण्डी शीतल नजरें मन का ताप हरे।।
3. द्रव्य पूजा नहीं करेंगे भाव पुजारी बनाना है,
ईश्वर नहीं है जग का कर्ता, प्रज्ञा जागृत करना है। 
पुण्य-पाप के भांगे तोड़ें, स्व कल्याण करें।। 
4. मुख्य मुनि की पहली कक्षा गुणस्थान को सिखलाया,   
परमेष्ठि पंचक के गुण का श्लोक सिखाकर रटवाया।
आचार्यों के गुण छत्तीस कहों कहां मिले ?
5. हॉस्टल बॉर्डिंग में क्या अंतर, निक्षेपों को बतलाया, 
पुण्यों की वांछा नहीं करना, निर्जरा गुर सिखलाया। 
आठों कर्मों के दर्पण से खुद को हम परखें।।
6. इंट्रोडक्शन तेरापंथ का, सिद्धांतो को समझाया,
ज्ञान, कर्म और भक्ति योग का मार्ग एक है बतलाया।  
ठण्डा पानी पी लो सतियां प्रभु फरमान करे।। 
तेला करने वालों को ही मिलता गुरु से ग्रास है, 
परोक्ष में भी कभी-कभी बकसाते पात्री खास है। 
कोरा कागज गुरु कर से पा हो गए हरे भरे।। 
कुछ बाकी है उनकी रीति गगरी आज भरे।। 
शीतल सुखकर सन्निधि तेरी लगती सबको मनहारी, 
सुनकर तेरी मधुरिम वाणी जुड़ती मन की इकतारी।  
इंगित के आराधक बनकर प्रभु दिल वास करें।।
कृपा कराई प्रभु सवाई आगे यूं ही करवाएं, 
तत्त्वज्ञान और ग्रन्थों की बातें यू ही बतलाएं। 
जब ही हो अवकाश आपको हमको याद करें।। 
 
(लय - अणुव्रत है सोया संसार)
उस समय वहां साध्वीवर्याजी सहित 22 सतियां उपस्थित थी। 
गीत की सम्पन्नता के बाद:
पूज्य प्रवर - आज से ठीक 50 वर्ष पहले लगभग इस समय मैं सोकर उठा था। 5 मई 1974 को गुरुदेव तुलसी की अनुमति से मुनिश्री सुमेरमलजी स्वामी के पास मेरी दीक्षा हुई थी। मैं सुबह चार बजे उठकर मुनिश्री के पास गया और मैंने कहा- 'आज म्हारै सोनै रो सूरज उग्यो है। आपरै हाथां स्यूं म्हारी दीक्षा हुसी।' मेरी दीक्षा के समय एक विवाद चला कि दीक्षा कहां हो - न्यारा में या गुरुकुलवास में।
मुख्यमुनिश्री - पूज्य प्रवर आपश्री की क्या इच्छा थी?
आचार्य प्रवर - वैसे तो कहीं भी हो, किन्तु मेरी थोड़ी इच्छा थी कि दीक्षा मुनिश्री के पास हो जाए। उस समय रोशनलालजी स्वामी ने भी जोशीला भाषण बोला था। उन्होंने कहा- आज हम नौ निधि बनने जा रहे हैं। इन दो (हीरालाल, मोहनलाल) की दीक्षा के बाद हम 7 से 9 हो जाऐंगे। मोहन से सरदारशहर 21 होने जा रहा है और सरदारशहर से मोहन 21 होने जा रहा है। उस समय गंगाशहर के 17 सन्त थे और सरदारशहर के भी 17 सन्त थे। उन्होंने अपने भाषण में कहा- आज सरदारशहर ने गंगाशहर पर टांग फेर दी है। मैंने जब दीक्षा ली तब मैने भी भाषण बोला था। उसमें मेरी आवाज बच्चे जैसी लगती है। इस प्रकार पूज्य प्रवर ने अपनी दीक्षा से सम्बंधित कई अनुभव सुनाए। फिर फरमाया- आज तारीख के हिसाब से मेरा दीक्षा दिन है। ऐसा लगता है साध्वियों ने इस गीत के माध्यम से मेरी अभिवंदना कर दी हो।