अनित्य जीवन से नित्य सिद्धत्व की प्राप्ति का करें प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण
छत्रपति संभाजीनगर की उपनगरीय यात्रा करते हुए भैक्षव शासन के एकादशम् पट्टधर आचार्य श्री महाश्रमण जी अक्षय तृतीया कार्यक्रम आयोजन स्थल पधारे। धर्म धुरंधर आचार्य प्रवर ने फरमाया कि शास्त्रों में हमें कल्याणी वाणी प्राप्त होती है। आगम साहित्य हमारे लिए एक महत्वपूर्ण वाणी है। हमारे धर्मसंघ में जो आगम सम्पादन का कार्य शुरू हुआ था उसकी घोषणा औरंगाबाद में ही हुई थी। आज से लगभग 69 वर्ष पहले परम वंदनीय आचार्य श्री तुलसी यहां पधारे थे और महावीर जयंती के अवसर पर उन्होंने यह शुभ घोषणा की थी।
जैन विश्व भारती साहित्य सम्पादन का कार्य करती है। बत्तीस आगमों का मूल पाठ तो प्रकाशित हो चुका है। अनेक आगमों के हिन्दी और संस्कृत अनुवाद, टिप्पण आदि भी प्रकाशित हो चुके हैं। यह भगीरथ कार्य जिसमें बहुत काम हुआ है, कुछ शेष भी है। आगम वाणी में अनेक शिक्षाऐं, तत्वज्ञान की बातें, अध्यात्म व दर्शन की बातें प्रसंग - कथानक आदि अनेक चीजें गद्य-पद्य में प्राप्त होती हैं।
तेरापंथ धर्मसंघ में 36 आगमों की मान्यता है, उनमें एक है उत्तरज्झयणाणि, जिसके 36 अध्याय हैं। उत्तराध्ययन के दसवें अध्याय में 'समयं गोयम मा पमायए' चरण के साथ श्लोकों के अन्त में गौतम के नाम से बार-बार संदेश दिया गया है कि गौतम! क्षण भर भी प्रमाद मत करो। इस संदेश का एक आधार अनित्यता का दिया गया। यह मानव जीवन अनित्य है। जैसे एक वृक्ष का पत्ता सूखकर गिर जाता है वैसे ही यह मनुष्य जीवन भी एक दिन समाप्त हो जाता है। हर संसारी प्राणी का जीवन अनित्य है, सिद्धत्व नित्य है। इसलिए हम प्रमाद न कर जागरूक रहने का प्रयास करें।
शरीर अध्रुव है, वैभव, धन-सम्पति भी शाश्वत नहीं है। मृत्यु निकट आती जा रही है, इसलिए जितना कर सकें धर्म का संचय करने का प्रयास करना चाहिए। इस अनित्य जीवन से शीघ्र नित्यता -सिद्धत्व की प्राप्त हो सके ऐसी साधना-आराधना करने का हम जितना हो सके प्रयास करें। गृहस्थ भी धर्म की साधना करें, सांसारिक कार्यों में संलग्न हुए रहते हुए भी कमल पत्र की तरह निर्लिप्त रहकर, धर्म साधना करते रहें। अनेक प्रकार के त्याग-प्रत्याख्यान, चौदह नियम, तपस्या आदि के द्वारा मानव जीवन का लाभ उठाने का प्रयास किया जा सकता है। पूज्यप्रवर की सन्निधि में जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित आगम 'अनुत्तरोवायिअदसाओ' का लोकार्पण किया गया। बहुश्रुत परिषद सदस्या 'शासन गौरव' साध्वी कनकश्री जी की आत्मकथा भी पूज्यवर के समक्ष लोकार्पित की गयी। पूज्यवर के स्वागत में व्यवस्था समिति मंत्री डॉ. अनिल नाहर, सभाध्यक्ष कौशिक सुराणा ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों की सुंदर प्रस्तुति हुई।
कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।