सत्य की साधना से प्राप्त हो सकता है परम शांति का तत्त्व : आचार्यश्री महाश्रमण
तेरापंथ धर्मसंघ के महासूर्य एकादशम् अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी का छत्रपति संभाजीनगर (औरंगाबाद) में पावन पदार्पण हुआ।
परम पावन ने फरमाया कि पुरुष! तुम सत्य को पहचानो। हमारी दुनिया में सच्चाई की साधना के लिए अभय का भाव होना आवश्यक है, सरलता का भी होना आवश्यक है। डरने वाला कभी झूठ भी बोल सकता है। भय से आदमी अयथार्थ भाषण कर सकता है। सच्चाई की साधना में कठिनाईयां भी आ सकती है, परन्तु हमारा विश्वास है कि सच्चाई परेशान तो हो सकती है, पर पराजित नहीं हो सकती। अंतिम विजय तो सच्चाई की होती है। सच्चाई की साधना में मनोबल चाहिए। पौरुष और वीर्य होता है तब सच्चाई की विशिष्ट साधना की जा सकती है। चारित्रात्माओं के लिए सर्वमृषावाद का जीवन भर त्याग होता है। हर सच्ची बात को बताना जरूरी नहीं है, जरूरी यह है कि साधु झूठ न बोले। सच्चाई की साधना से जो मिलता है, वह बहुत बड़ा तत्व होता है। परम शांति का तत्त्व सच्चाई की साधना से प्राप्त हो सकता है।
झूठ बोलना दिमागी तनाव का कारण बन सकता है। झूठ के पैर कमजोर पड़ सकते हैं। सच्चाई में विरूपता नहीं है, झूठ में विरूपता है। एक झूठ को ढकने के लिए दूसरा झूठ बोलना पड़ता है। सत्य सम्प्रदाय से भी ऊपर होता है। जहां सत्य है वहां संप्रदाय का मोह भी छोड़ देना चाहिए। संसार में संतता, त्याग का सम्मान होता है। गृहस्थों में भी ईमानदारी के प्रति रुझान रहे। वर्तमान में चुनावी माहौल चल रहा है, एक दूसरे पर प्रहार होता है पर झूठा प्रहार नहीं होना चाहिए। किसी पर झूठा आरोप अपनी वाणी से नहीं लगाना चाहिये। झूठा आरोप लगाने से जिह्वा के साथ आत्मा भी अपवित्र हो सकती है।
छत्रपति संभाजीनगर में अक्षय तृतीया महोत्सव करने पधारे आचार्य प्रवर ने फरमाया- अक्षय तृतीया का संबंध भगवान ऋषभ और वर्षीतप के पारणे से जुड़ा हुआ है। तीर्थंकर विश्व की महान विभूतियां होते हैं, जिनसे जनता को पथदर्शन मिलता है।
दुनिया में साधु समुदाय का होना भी मानों दुनिया का सौभाग्य है। "संत न होते जगत में जल जाता संसार।" संतों के उपदेश से लोग कितनी बुराईयों से बच सकते है, अच्छे मार्ग पर चलने वाले हो सकते हैं। 69 वर्ष पूर्व आचार्य श्री तुलसी के सान्निध्य में औरंगाबाद में महावीर जयंती के कार्यक्रम में आगम सम्पादन करने की घोषणा की थी। हम प्रयास करें आगम सम्पादन का कार्य शीघ्र सम्पन्न हो जाए।
चतुर्दशी के दिवस पर पूज्य प्रवर ने हाजरी का वाचन कराते हुए मर्यादाओं के प्रति जागरूक रहने की प्रेरणा प्रदान की। साधु-साध्वियों ने लेख-पत्र का उच्चारण किया।
साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि आचार्य प्रवर जहां-जहां पधारते हैं वहां प्रवचन करते हैं। प्रवचन से लोग जागृत होते हैं। जागृत रहने वाले व्यक्ति की बुद्धि का विकास होता है। प्रवचन से लोगों की विवेक चेतना जागृत होती है। गुरुदेव हित की बात बताते हैं, उपशम की चेतना जागृत करने की प्रेरणा देते हैं।
पूज्य प्रवर के स्वागत में डॉ भूूमरे, आचार्य महाश्रमण अक्षय तृतीया प्रवास व्यवस्था समिति अध्यक्ष सुभाष नाहर, मुस्लिम धर्म गुरु मौलाना हबीद अंसारी, ईसाई धर्मगुरु बिशप कसाब, मारवाड़ी सभा के पुरुषोत्तम दरक, सकल जैन समाज के अध्यक्ष राजेंद्र दर्डा आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। तेरापंथ महिला मंडल ने स्वागत गीत का संगान किया। पूज्य प्रवर के दर्शनार्थ राजनीति, सामाजिक, व्यापारिक क्षेत्र के अनेकों गणमान्य लोग उपस्थित हुए। स्वागत कार्यक्रम का संचालन सकल जैन समाज के सचिव महावीर पाटनी ने किया। गुरुदेव के सान्निध्य में जैन विवेक पत्रिका के विशेषांक का विमोचन किया गया।
अभातेयुप द्वारा पूज्य प्रवर के दीक्षा कल्याण महोत्सव वर्ष के उपलक्ष पर प्रकाशित युवादृष्टि विशेषांक 'चमन के बागवां' पूज्य प्रवर को समर्पित किया गया। इस संदर्भ में अभातेयुप राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री रमेश डागा ने अपनी भावना अभिव्यक्त की।
कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।