उत्थान के बाद नहीं करे प्रमाद : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

उत्थान के बाद नहीं करे प्रमाद : आचार्यश्री महाश्रमण

छ: दिवसीय आचार्य महाश्रमण दीक्षा कल्याण महोत्सव समापन का तीसरा दिन। युगप्रधान, युगदृष्टा आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आर्षवाणी का रसास्वाद कराते हुए फरमाया कि जब जाग गये हो, तो अब प्रमाद मत करो। अनन्तकाल की यात्रा में यह मानव जीवन मिलता है। मानव जीवन में जब वैराग्य भाव प्रस्फुिटत हो जाता है, मनुष्य त्याग-संयम के पथ पर चलने के लिए तैयार हो जाता है, यह बहुत बड़ा उत्थान होता है। उत्थान होने के बाद फिर वह प्रमाद न करे तो वह अपनी परम मंजिल को भी प्राप्त कर सकता है। हमारे यहां सामान्यतया वर्तमान आचार्य का पट्टोत्सव मनाया जाता है यह एक संघीय समारोह होता है। आचार्य का अपना एक स्थान होता है, जैन श्वेतांबर तेरापंथ के आचार्यों का एक दशक व्यतीत हो गया है। दूसरे दशक की प्रथम कड़ी का आचार्यकाल चल रहा है। पंच परमेष्ठी में आचार्य का मध्य स्थान होता है। मानो ऊपर वाले दो का आशीर्वाद और नीचे वाले दो का सेवा सहयोग।
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ में आचार्य एक उच्च स्थान होता है, सर्वोच्च स्थान धर्मसंघ में होता है। समय के अनुसार स्थितियां बदल सकती हैं। आचार्य भिक्षु तो बोझ लेकर भी विहार करते थे, पर वर्तमान में ऐसा नहीं है। आचार्य की अपनी सम्पदाएं हैं, छत्तीस गुण बताये गए हैं, वे गुण अच्छी तरह से आत्मसात हो जाये तो मानना चाहिए कि आचार्य सम्पदा अच्छी है। आचार्य आदर्श के रूप में भी रहे हैं। मोक्ष की दृष्टि से अच्छी बात है कि आचार-सम्पदा मजबूत है। जो आचार्य दायित्व निर्वहन अच्छी तरह कर लेता है उसको मोक्ष में जाने के लिए पांच जन्मों से ज्यादा लेने नहीं पड़ते। छत्तीस गुण अच्छे रहें तो वह मोक्ष की दिशा में अनुकूल और आगे बढ़ने वाला है। सबसे बड़ी सम्पदा तो आचार सम्पदा है, इसके आगे देखें तो आचार्य के पास श्रुत सम्पदा भी है। हमारे धर्म संघ में वैधानिक रूप से उपाध्याय का पद किसी को नहीं दिया गया है। आचार्य ही उपाध्याय के दायित्व से युक्त हैं। आचार्य के पास तत्व, शास्त्र व भाषा का भी ज्ञान हो, आचार्य को बहुश्रुत भी होना चाहिए।
आचार्य के पास शरीर सम्पदा भी हो। ज्यादा रूपवान होना जरूरी नहीं, शरीर सबल होना चाहिए। स्वास्थ्य का उचित ध्यान भी रखना चािहए। तपस्या-साधना युक्त शरीर दर्शनीय होता है। वचन सम्पदा भी अच्छी हो, वाणी स्पष्ट शुद्ध हो। वाचन-अध्यापन सम्पदा भी अच्छी हो, मति-प्रज्ञा अच्छी रहे। शुद्ध भावना से निर्णय करें। तार्किक ढंग से प्रश्न का उत्तर देने वाले हो। धर्मसंघ की व्यवस्था में भी प्रबन्धन कौशल हो। त्याग-संयम बढ़े ऐसा प्रयास हो। मुमुक्षुओं की संख्या बढ़ती रहे, शिष्य सम्पदा बढ़े। हमारे धर्म में आचार्य के पास बहुत से अधिकार हैं। विनीत शिष्य -शिष्याएं मिलना भी आचार्य का सौभाग्य होता है। श्रावक - श्राविकाएं भी विनीत हैं, इंगित प्राप्त करते ही कार्य करने लग जाते हैं, समणीयां भी हैं। आचार्य को परम सहयोगी मिल जाये यह भी आचार्य का बड़ा भाग्य होता है, उपयुक्त उत्तराधिकारी प्राप्त हो जाता है। इन सबसे आचार्य सम्पदा सम्पन्न बन
जाते हैं। आचार्य चित्त-समाधि में रहने वाले हो। आचार्य प्रवर की अभिवंदना में अनेकों चारित्रात्माओं ने अपनी-अपनी प्रस्तुति दी। साध्वी वृंद एवं समणी वृंद ने सामूहिक गीत का संगान किया।जालना की बहन - बेटियों एवं महिला मंडल ने सामूहिक गीत की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।