भाग्यशाली ही कर सकता है संयम का जीवन भर निर्वाह : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

भाग्यशाली ही कर सकता है संयम का जीवन भर निर्वाह : आचार्यश्री महाश्रमण

अध्यात्म जगत के महासूर्य आचार्य श्री महाश्रमण जी गढ़ेजल पधारे। दिनांक के अनुसार 13 मई को परम पावन आचार्य प्रवर का जन्मदिवस था। पूज्यवर ने पावन प्रेरणा प्रदान कराते हुए फरमाया कि निर्ग्रन्थ वे होते हैं जो पांच आश्रवों का परित्याग करने वाले, तीन गुप्तियों से गुप्त, छः काय के जीवों के प्रति संयमी और पांच इन्द्रियों का निग्रह करने वाले धीर होते हैं, ऋजुदर्शी होते हैं। ये संन्यासी या साधु के लक्षण बताए गए हैं।
साधुता बडी चीज है, साधुता प्राप्त हो जाने के बाद दुनिया की बड़ी से बड़ी भौतिक चीज भी बहुत छोटी हो जाती है। संन्यास बहुत बड़ा हीरा है। साधु तो अंकिंचन होता है पर साधु के पास जो चीज है, वो गृहस्थों के पास नहीं है, इसलिए बड़े-बड़े सत्ताधीश भी साधु के सामने नतमस्तक-प्रणत हो जाते हैं। यह साधु की साधना का महात्म्य है। कहा तो गया है कि देवता भी उसको नमस्कार करते हैं जिसका मन हमेशा धर्म में रमा रहता है।
कोई भाग्यशाली आदमी ही संन्यास को प्राप्त कर जीवन भर निर्वाह कर सकता है। गृहस्थ जीवन में भी संयम रखा जा सकता है। अणुव्रत के छोटे-छोटे नियम गृहस्थ के जीवन में आ जाये तो गृहस्थ जीवन अच्छा हो सकता है। आचार्य भिक्षु एक महान संतपुरुष थे, उनके जन्म त्रिशताब्दी का वर्ष आने वाला है। जन्म होना एक बात है, तपस्या करना, साधना करना, संन्यास का जीवन जीना बड़ी बात होती है। आचार्य प्रवर ने जयाचार्य द्वारा वैशाख शुक्ला षष्ठी को बीदासर में रचित 'भिक्षु म्हारे प्रगट्या जी भरत खेतर में' का आंशिक संगान करवाया।
संन्यास लेने वाले संत पुरुष दूसरों को भी प्रेरणा देने वाले होते हैं जिससे लोगों में अच्छी भावना जाग सकती है, अच्छा उत्कर्ष हो सकता है, अच्छा परिवर्तन आ सकता है। कहा गया है- 'संत न होते जगत में, जल जाता संसार'। दुनिया का सौभाग्य है कि दुनिया में साधु हमेशा रहते हैं। कम से कम 20 तीर्थंकर भी हमेशा दुनिया में रहते हैं। गृहस्थों में भी संसार में रहते हुए कमल पत्र की तरह निर्लेप रहने की चेतना जाग जाए। अहिंसा, सत्य, अचौर्य आदि नियम रहें तो आत्मा शुद्ध रह सकती है, आगे का जीवन भी अच्छा रह सकता है। पूज्यप्रवर के स्वागत में भंडारी एवं फूलफगर परिवार की ओर से गौतम फूलफगर ने अपनी भावना अभिव्यक्त की।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।