साधु की उपासना से हो सकते हैं अनेक लाभ : आचार्यश्री महाश्रमण
धर्म-धुरन्धर आचार्यश्री महाश्रमण जी आज शेलगांव पधारे। पावन प्रेरणा प्रदान कराते हुए पूज्यवर ने फरमाया कि हमारे पास पांच इंद्रियां हैं। पांच इंद्रियों में एक है श्रोतेंद्रिय। जिस प्राणी के पास कान होता है, वह प्राणी इंद्रियों की दृष्टि से विकसित प्राणी होता है। श्रोत्र होता है और श्रवण शक्ति अच्छी होती है तो आदमी सुन सकता है। सुनना कान की एक प्रवृत्ति है। सुनने से बहुत ज्ञान हो सकता है। अच्छी और गलत बात को आदमी सुनकर जान सकता है। जहां तक हो सके अच्छी बात सुनो। बुरा सुनो मत, बुरा देखो मत, बुरा बोलो मत, बुरा सोचो मत और बुरा करो मत। सब अच्छा सुनें। दु:खी आदमी का दु:ख भी मौका लगे तो सुनने का प्रयास करें, आध्यात्मिक सेवा करने का प्रयास करें।
सुनन से ज्ञान मिलेगा, इसलिए सुनना चाहिए। बात को ध्यान से, मन से सुनें। कान का बढ़िया उपयोग करें। त्यागी-साधु की पर्युपासना करने से अच्छी बात सुनने को मिलती है, सुनने से ज्ञान होता है फिर विज्ञान होता है कि क्या छोड़ने लायक है, क्या ग्रहण करने लायक है। विज्ञान होने से आदमी हेय को छोड़ देता है। प्रत्याख्यान हो गया तो जीवन में संयम हो गया। संयम हो गया तो संवर होगा, तपस्या होगी, कर्म कटेंगे, योग निरोध हो अक्रिया की स्थिति होगी, फिर आगे सिद्धि-मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। साधु की उपासना से इतने एक के बाद एक लाभ हो सकते हैं। साधु की तो थोड़ी देर की सत्संगत भी लाभदायी हो सकती है। शिक्षा संस्थान भी ज्ञान ग्रहण का बड़ा स्थान होता है। बच्चों में ज्ञान के साथ अच्छे संस्कार आ जाए। विद्यार्थी में अहिंसा, ईमानदारी का भाव आ जाए। बुद्धि के साथ भावनात्मक शुद्धता रहे। संस्कार युक्त शिक्षा से विद्यार्थियों का कल्याण होने की संभावना रह सकती है।
मानव जीवन हमें प्राप्त है, इसका बढ़िया उपयोग करें। अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान, जीवन विज्ञान के उपक्रम लोक कल्याणकारी उपक्रम हैं। जीवन में सद् आचार और सद् विचार रहे। आदमी भाग्य के साथ अच्छा पुरुषार्थ भी करे। स्वयं का काम स्वयं करने का प्रयास करें, आलसी न बने। ज्ञान-विज्ञान करते-करते हमारी आत्मा कल्याण काे प्राप्त हो सकती है। पूज्यवर ने बच्चों को संकल्पत्रयी समझाकर स्वीकार करवाये। गुरु मिश्री होमियोपैथी मेडिकल कॉलेज की ओर से योगेश देसरड़ा, कोमल देसरड़ा, कंचन देसरड़ा ने पूज्य प्रवर के स्वागत में अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।