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अक्षय तृतीया दिवस पर आयोजित िवभिन्न कार्यक्रम
तेरापंथ भवन में 'शासनश्री' मुनि विजयकुमार जी के सान्निध्य में आयोजित अक्षय तृतीया कार्यक्रम में मुनिश्री ने कहा कि तिथियां आती हैं और चली जाती हैं। पर वैशाख के शुक्ल पक्ष की तीज के पीछे भी एक विशेष इतिहास जुड़ा हुआ है। इस दिन भगवान् ऋषभ ने दान की एक नई परम्परा की शुरुआत की थी उस परम्परा का कभी क्षय नहीं हुआ, इसलिए वह तिथि अक्षय बन गई। ऋषभ ने अपने जीवन के 83 भाग गृहस्थ जीवन में बिताये, कर्म शास्त्र का लोगों को प्रशिक्षण दिया। जीवन के 84 वें भाग में उन्होंने धर्मयुग का प्रवर्तन किया। अपने सम्पूर्ण राज्य की व्यवस्था करके उन्होंने संयम जीवन स्वीकार किया। विचरण करते हुए वे हस्तिनापुर नगर पधारे। नगर के राज मार्ग पर वे भिक्षा के लिए घूम रहे थे। ऋषभ को देखकर प्रपौत्र श्रेयांसकुमार को जाति स्मरण ज्ञान हुआ और उसने भिक्षा के लिए निवेदन किया। श्रेयांसकुमार इक्षुरस का दान देकर कृतकृत्य हो गया। बाबा ऋषभ ने पहली बार अपने तप का पारणा किया। वह वैशाख शुक्ला तीज का दिन था, विशुद्ध दान की परम्परा की उस दिन से शुरुआत हुई थी। इस दिन की महत्ता को ध्यान में रखकर हजारों-हजारों व्यक्ति वर्षीतप की आराधना करते हैं, अपने हाथ से गुरुओं को पात्र दान देकर पारणा करते हैं। मुनिश्री द्वारा नमस्कार महामंत्र के उच्चारण के बाद महिला मण्डल की बहनों ने मंगल गीत प्रस्तुत किया। मुनिश्री ने वर्षीतप के उपलक्ष्य में गीत का संगान किया। सरदारशहर में सातवें वर्षीतप के साथ मुनि रमणीयकुमारजी एवं 6 श्रावक-श्राविकाओं के वर्षीतप के पारणे हुए।