जिनका सदा करूं स्मरण

जिनका सदा करूं स्मरण

प्रातः उठकर नित करता हूँ जिनका सदा स्मरण।
रोग-शोक सब दूर भगाते, मेरे महाश्रमण।।
सदा प्रसन्नचित्त हैं रहते, करते आत्मरमण।
अज्ञान तिमिर को दूर भगाते, मेरे महाश्रमण।।
जिनकी अमृत वाणी सुन के, मिटते जन्म मरण।
भटकों को भी राह दिखाते, मेरे महाश्रमण।।
जिनके दर्शन से हो जाता, भक्तों का कर्म क्षरण।
इस दुनिया की शान बढ़ाते, मेरे महाश्रमण।।
छा जाती घर-घर खुशहाली, पड़ते जहां चरण।
सब ऋतुओं में समता धरते, मेरे महाश्रमण।।
जिन वाणी का मर्म सुनाते, हर्षित करते कण-कण।
पाप ताप संताप मिटाते, मेरे महाश्रमण।।
जिनकी सौरभ से सुरभित है, नंदन वन सा यह गण।
जिन शासन की आब बढ़ाते, मेरे महाश्रमण।।