विश्वपति तेरे चरण में
विश्वपति तेरे चरण में, ध्यान मुझको चाहिए।
मैं हूं तेरा भक्त यह, अभिमान मुझको चाहिए।।
कर्ण और जिह्वा तेरी ही, भक्ति में अर्पण करूँ।
दोनों पर बस तेरा ही, गुणगान मुझको चाहिए।।
बेखुदी ऐसी हो जिसमें, भूलूं अपने को भी मैं।
सिर्फ तेरा ही हृदय में, भान मुझको चाहिए।।
शत्रुओं को भी लखूं शुभ, प्रेम-भीनी आँख से।
हर तरफ बस प्रेम का, सामान मुझको चाहिए।।
स्वर्ग के सौंदर्य को, सानन्द ठोकर मार दूं।
वासना-जय की अनोखी, शान मुझको चाहिए।।
देवता दुःख से बचाने को, न आयें मेरे पास।
सत्य-व्रत का पारखी, सम्मान मुझको चाहिए।।
और कुछ वरदान की, इच्छा नहीं बिल्कुल ललित।
धर्म पर मिटने का एक, वरदान मुझको चाहिए।।