मानवता के सृजनहार
उज्ज्वलतम दीक्षा कल्याणक, स्वर्णिम पांच दशक हैं।
महातपस्वी महाश्रमणवर, जीवन अति प्रेरक है।।
अप्रमाद की प्रतिमा, जिनका कण-कण जागृतिमय है।
चरैवेति है जीवनवृत्त, महापुरुष सदा गतिमय है।।
तुलसी महाप्रज्ञ गुरुद्वय की, निरखें अनुपम कृति हैं।
पापभीरुता वाणी संयम, सहज सहचरी धृति है।।
अतिशय सौभागी हम ऐसे अनुशास्ता को पाकर।
संघ शिरोमणि युगप्रधान, हे एकादशम् दिवाकर।।
पथदर्शन पाकर तेरा हम, सत्पथ पर बढ़ जाएं।
तेरे आदर्शों को हम निज आचरणों में लाएं।।
तेरी शीतल छत्र छाँव में, मोद मनाएं अविकल।
हो सुदीर्घतम संयम यात्रा, स्वस्थ निरामय पल-पल।।