स्वर्ण जयन्ती आई
महाश्रमण दीक्षा कल्याणक स्वर्ण जयन्ती आई,
भक्त खड़े अभिनन्दन करते, अतुलित श्रद्धा छाई।
युगप्रधान के अवदानों से, जन-जन आभारी है,
विश्व-शान्ति की हो स्थापना, नित प्रयास जारी है।।
जन्मदिवस तिरसठवें पर, गण का उपवन हर्षित है,
नैतिकता को लायेंगे हम, जन-मन संकल्पित है।
भवन बहुत से, बने समाज में, श्रावक उत्साह बढ़ा है,
ज्योति-चरण जयकार जगत में, धर्म शिखर पे चढ़ा है।।
पन्द्रहवें पद-अभिषेक की, अदभुत छटा निराली,
उद्बोधन नित गुरु का पाकर, बन गए गौरवशाली।
तुलसी-तेज, महाप्रज्ञ प्रज्ञा, यह दोनों की प्रतिमा है,
महा तपस्वी महावीर - सी, देखी तेरी महिमा है।।
तिल-तिल करते जाते पातक, ऐसी तेरी सन्निधि है,
आध्यात्मिक उत्कर्ष तुम्हारा, मंगल तुझमें सिद्धि है।
मानवता का त्राण कर रहे, यह संकल्प तुम्हारा है,
अब तो भव के पार ले चलो, जहाँ सिर्फ उजियारा है।।