प्रदीप्त पौरूष के पुंज- आचार्य महाश्रमण

प्रदीप्त पौरूष के पुंज- आचार्य महाश्रमण

युग के कैनवास पर नए-नए सपने संजोकर संकल्पों के जरिए उन्हें सच करने वाली विरल-विभूति है- आचार्य महाश्रमण। विश्वसंत के रूप में जिनका नाम बड़े ही आदर एवं गौरव के साथ लिया जाता है। प्रदीप्त पौरूष के पुंज, जब उन्मेषों के अनूठे सृजनहार, विलक्षण प्रतिभा के धनी, अनगिन विलक्षणताओं के दस्तावेज युगप्रभावक आचार्य महाश्रमण के पारदर्शी व्यक्तित्व का स्वर्णिम जीवन इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों पर स्वर्णाक्षरों में अंकित हो गया।
इस वसुंधरा पर ऐसे व्यक्ति बहुत कम पैदा होते हैं जो मानवता के लिए पूजनीय होते हैं, अभिवंदनीय होते हैं, जिनके आगे लाखों सिर श्रद्धा से झुक जाते हैं। संत, महंत, प्रणम्य विवेकानंद ने महिमामंडित व्यक्तित्व की अभिवंदना करते हुए कहा-
‘पवित्र चरितं यस्या, पवित्र जीवनं तथा
पवित्रता स्वरूपिण्यै तस्मै कुर्मो नमो नमः’
हम पवित्रता के प्रति सहज श्रद्धाप्रणत हैं। हम देखते हैं- तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम् अधिशास्ता आचार्य महाश्रमणजी को, जिनका संपूर्ण जीवन पवित्रता का अक्षयकोष है। परम तत्त्व को पाने हेतु उनके आत्मसदन में सदैव पवित्रता का परचम लहरा रहा है। महामनस्वी आचार्य महाश्रमणजी का जीवन-दर्शन सहजता, सौम्यता, सरलता, समता का गुण-समवाय है। आपकी उपासना में चाहे धर्मनेता आएं या राजनेता सत्यान्वेषी दृष्टिकोण से सबका पथ सहज प्रशस्त हो जाता है।
महावीर, बुद्धि, ईसा, भिक्षु, तुलसी, महाप्रज्ञ के साथ महाश्रमण का नाम भी महामानव के रूप में प्रतिष्ठित है।
महानता के पेरामीटर की चर्चा करते हुए बताया गया है - जिसका चिंतन महान् है, जिसका लक्ष्य महान है, जिसका भविष्य महान है, जिनकी लाइफ स्टाइल का ग्राफ आम जनता से हटकर ऊंचा होता है। सही प्रबंधन, सही सोच, मधुर संभाषण, विनयशीलता, विवेकशीलता, श्रमशीलता, श्रद्धाशीलता, कर्तव्यशीलता,कार्यशीलता जैसे महान् गुण महानता के पद को सुशोभित करते हैं।
महावर्चस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी का व्यक्तित्व इन महान गुणों की सौरभ से सुरभित होकर पूरे जहान में संतता की अलग पहचान बनाई है। आपका लाइफ मेनेजमेंट सबके लिए आदर्श है।
कहा जाता है- पर्वत में ऊंचाई होती है, गहराई नहीं, सागर में गहराई होती है, ऊंचाई नहीं। आचार्य प्रवर में इन दोनों का सुंदर मणिकांचन योग है। आपकी चारित्रिक ऊंचाई पर्वत से भी कई गुना अधिक ऊंची है, तो दूसरी ओर ज्ञान की गहराई सागर से भी विशेष गहरी है।
“Most powerful is he who has
himself in his power.”
यह कहावत तेरापंथ के भाग्य विधाता, पूज्य प्रवर के जीवन में चरितार्थ होती है। सप्तवर्षीय अविस्मरणीय अहिंसा यात्रा के दौरान हर इंसान की एक आवाज ‘दीन-दुखियों की पीर हरने आया है कोई रहनुमा’।
सचमुच में मुश्किलें हर जिंदगी में आती है, जो करूणा के सागर बन, क्षमा के पारावर बन, शांति के अवतार बन, आसानी से हर परिस्थिति को झेल लेते हैं, वे श्रमण से महाश्रमण बन जाते है।
पुरुषार्थ के शिखर पुरूष हैं- आचार्य महाश्रमण ।
समत्व की पराकाष्ठा हैं- आचार्य महाश्रमण ।
पथिक को प्रतिबोध देने वाले हैं- आचार्य महाश्रमण
भीष्म पितामह वत् दृढ़ प्रतिज्ञाधारी हैं- आचार्य महाश्रमण