श्रद्धा होने के बाद संयम में पराक्रम है विशिष्टतम बात : आचार्यश्री महाश्रमण
वैशाख शुक्ला चतुर्दशी, युवामनीषी युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमणजी का दीक्षा दिवस, जिसे धर्मसंघ युवा दिवस के रूप में मनाता है। आचार्यप्रवर के 50वें दीक्षा कल्याण वर्ष का भी आज समापन हो रहा है। आज से लगभग 50 वर्ष पूर्व मुमुक्षु मोहन की दीक्षा आचार्य श्री तुलसी की आज्ञा से सरदारशहर में मुनि श्री सुमेरमलजी 'लाडनूं' के करकमलों से हुई थी। आप भारतीय ऋषि परम्परा के गौरव पुरुष हैं। आज ही के दिन परम उपकारी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने 2 वर्ष पूर्व सरदारशहर में मुख्य नियोजिका साध्वी विश्रुतविभाजी को साध्वीप्रमुखा पद पर स्थापित किया था। साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी तेरापंथ धर्मसंघ की नवम साध्वीप्रमुखा के रूप में शोभायमान हैं।
जन कल्याण के लिए समर्पित, संयम के सुमेरू, अध्यात्म के महासागर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने दीक्षा दिवस के पावन अवसर पर पावन पाथेय प्रदान कराते हुए फरमाया - जीव चौरासी लाख जीव योनियों में भ्रमण करता है। भ्रमण करते-करते जब यह मानव जीवन प्राप्त होता है वह एक विशेष बात हो जाती है। मानव जन्म मिलने के बाद धर्म के बारे में सुनने और जानने का मौका मिल जाये तो और विशेष बात हो जाती है। सुनी-जानी धर्म की अच्छी-सच्ची बातों पर श्रद्धा हो जाये तो और विशेष बात, श्रद्धा होने के बाद संयम में पराक्रम करने का उत्साह जाग जाये, संयम में पुरुषार्थ हो जाये यह तो मानो विशिष्टतम बात हो जाती है।
आज वैशाख शुक्ल चतुर्दशी है, वि.सं. 2081 है। आज से पचास वर्ष पूर्व वि.सं. 2031 वैशाख शुक्ला चतुर्दशी के दिन मुझे साधु दीक्षा लेने का महान सौभाग्य प्राप्त हुआ था। कोई-कोई मनुष्य ऐसे होते हैं जो बचपन में गार्हस्थ्य को छोड़ साधु का जीवन स्वीकार कर लेते हैं, अध्यात्म के पथ पर चलने के लिए तैयार हो जाते हैं।
मुझे परम पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी की आज्ञा से मुनिश्री सुमेरमलजी स्वामी लाडनूं ने आज के दिन दीक्षित किया था। साथ में मुनि श्री उदित कुमारजी स्वामी भी दीक्षित हुए थे। उनका एक संदेश मुझे दिया गया है। आज के दिन संन्यास मिला, मानों सोने का सूरज उगा था। संन्यास जीवन की आधी शताब्दी सम्पन्न हो गई, शताब्दी का उत्तरार्ध मानो शुरू हुआ है। आचार्यश्री तुलसी के अनुशासनत्व में दीक्षा हुई बाद में आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के सान्निध्य में रहने का, साधना करने का, पढ़ने का, अध्ययन करने का अवसर मिला। गुरुओं का चिंतन था और भाग्य का योग था इस धर्म संघ में मैं एक बच्चे के रूप में दीक्षित हुआ था। मेरी संसारपक्षीय मां, संसारपक्षीय ज्येष्ठ भ्राता श्री सुजानमलजी दुगड़ का योग मिला। आज के दिन मां, परिवार भाई सब को छोड़कर मैंने संन्यास का जीवन स्वीकार किया। बाद में गुरुओं के चिन्तन से इस धर्म संघ का पूरा जिम्मा मुझे सौंप दिया गया। जहां बालक बनकर आया था उस धर्म संघ का सर्वोच्च दायित्व भी गुरुदेव श्री महाप्रज्ञजी ने सौंप दिया। संन्यास और साधुता इतनी बड़ी चीज है कि उसके सामने भौतिक चीतें तो बहुत ही छोटी हैं, भौतिक सुविधाएं ना कुछ जैसी होती है। संन्यास तो चिन्तामणी रत्न है। संन्यास यानि अपने प्रभु के पास रहने का अभ्यास।
लाडनूं में प्रवेश –
मैने योगक्षेम वर्ष लाडनूं में करने की घोषणा की थी। उस सन्दर्भ में 6 फरवरी 2026 को लाडनूं में प्रवेश करने का भाव है। एक वर्ष से भी ज्यादा लाडनूं में प्रवास करने का भाव है। 2027 का मर्यादा महोत्सव करके यथासंभव सरदारशहर जाने का भाव है। पूज्यप्रवर ने घोषणा की - समणी अक्षयप्रज्ञाजी और समणी प्रणवप्रज्ञाजी का श्रेणी आरोहण कर सूरत में 19 जुलाई को साध्वी दीक्षा देने का भाव है। पूज्यवर ने आगे फ़रमाया - धर्मसंघ ने इतना बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया है। हमारे पचासवें दीक्षा कल्याण समारोह पर अनेक त्याग-संकल्प लेने का प्रयास किया है। गुरु गणेश तपोधाम परिसर में हमारा जालना का प्रवास हुआ है। स्थानकवासी साधु-साध्वियां भी आएं हैं, बड़ा सौहार्द का प्रयास इन्होंने किया है।
गुरुदेव तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञजी दो गुरु और मेरे दीक्षा प्रदाता मुनिश्री सुमेरमलजी स्वामी 'लाडनूं' थे। उनके साथ मुनि सोहनलालजी व मुनि रोशनलालजी भी थे। उन सभी को मैं आज याद करता हूं। उनकी आत्माएं जहां भी हैं, हमें प्रेरणा दे सकें तो देते रहें। मैं अपनी साधना में आगे बढ़ने का प्रयास करता रहूं। आज ओमजी बिरला और राव साहब का आना हुआ है। ये भी खूब आध्यात्मिक सेवा करते रहें।
बख्शीष और प्रेरणा –
पचास वर्ष सम्पन्नता का अवसर है। हमारे धर्म संघ के साधु-साध्वियां इसके प्रतीक के रूप में मूल विगयों की बख्शीष दी जा रही है। इसके अलावा कोई एक आगम पढ़ने का प्रयास करें। भगवती या उत्तराध्ययन का स्वाध्याय करने की प्रेरणा दी जा रही है। साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने कहा कि कुछ आचार्य काव्य में तो कुछ प्रवचन में कुशल होते हैं, कुछ न्याय विशारद होते हैं, कुछ सैद्धांतिक होते हैं लेकिन चारित्र की कला में कुशल विरले आचार्य होते हैं, उनमें एक नाम है- आचार्यश्री महाश्रमणजी का। आपने आज के दिन चारित्र रत्न को स्वीकार किया था और कुछ व्रतों को ग्रहण किया था। आपका संन्यास तेजस्वी बन रहा है क्योंकि आप व्रत की चेतना में विश्वास करते हैं। 50 वर्षों से आप
छोटे-छोटे तप की अखंड आराधना कर रहे हैं। आपका संन्यास तेजस्वी बन रहा है क्योंकि आपका मन, वचन और कर्म पवित्र है। व्रत और संयम की चेतना आपको अध्यात्म पथ पर प्रतिष्ठित कर रही है। आचार्य श्री तुलसी ने आपको 'महाश्रमण' पद पर, आचार्य महाप्रज्ञ जी ने आपको 'युवाचार्य' के पद पर प्रतिष्ठित किया। शासनमाता ने आपको 'युगप्रधान' के पद पर स्थापित किया। आपने प्रलंब यात्राएं की, आप केवल तेरापंथ के आचार्य नहीं इंसानियत के आचार्य हैं। आज के दिन आपने मुझे दायित्व दिया था, आपश्री से इतनी प्रार्थना करती हूँ आप मुझे ऐसी आध्यात्मिक ऊर्जा दें जिससे मैं इस दायित्व का सम्यक्तया निर्वहन कर सकूँ। साध्वीप्रमुखाश्रीजी ने साध्वी समाज की ओर से आचार्यप्रवर को रजोहरण, प्रमार्जनी और एलवान समर्पित किया।
कार्यक्रम का सञ्चालन करते हुए मुख्य मुनि श्री ने कहा कि पूज्यप्रवर के दीक्षा के स्वर्ण जयंती को कल्याण वर्ष के रूप में मनाया गया। आज के दिन पूज्यवर ने स्व-पर कल्याण के लिए प्रस्थान किया था। आचार्य श्री महाश्रमण 600 मास दीक्षा पर्याय का जागरूकता से पालन करने वाले, अमल अन्तः करण, उपशांत कषाय और वीतराग कल्प चेतना के धारक हैं। सूयगड़ो के अनुसार कोई वीतराग बन जाए उसकी तो बात ही निराली है लेकिन जो सकषायी होते हुए भी उनका निग्रह करता है वह वीतराग तुल्य होता है। इसलिए पूरा धर्मसंघ आपको वीतराग कल्प आचार्य के रूप में देख रहा है। परम पूज्य आचार्य प्रवर के दीक्षा कल्याण वर्ष में अनेकों चारित्रात्माओं एवं श्रावक-श्राविकाओं ने 51 संकल्पों को स्वीकार किया, समापन के छः दिवसों में भी अनेकों लोगों ने संकल्प स्वीकार किये। इस वर्ष में सघन साधना शिविर, महाश्रमण कीर्तिगाथा, वीतराग पथ कार्यशाला जैसे अनेकों कार्यक्रम समायोजित किये गए।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने कहा कि स्थानांग सूत्र में पराक्रम के आधार पर व्यक्तित्व के चार प्रकार बताए गए हैं - शान्तिशूर, तप:शूर, दानशूर और युद्धशूर। जिस व्यक्ति की सहिष्णुता की साधना विशिष्टतम होती है वह शांतिशूर कहलाता है। आचार्य श्री की सहिष्णुता साधना अनुत्तर है, आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ने आपकी विशिष्टतम साधना को देखते हुए आपको महातपस्वी सम्बोधन से सम्बोधित किया, आपसे मिलने वाले समय दान, स्नेह दान और ज्ञान दान से जन-जन आपसे अभिभूत हैं, क्रोध-मान-माया-लोभ रुपी चारों शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने का आपका पराक्रम अनुत्तर है अतः मैं आपकी शान्तिशूर, तपःशूर, दानशूर और युद्धशूर के रूप में अभ्यर्थना करती हूँ। आप जो संकल्प करते हैं उसे निष्ठा के साथ पूर्णता तक ले जाते हैं इसलिए आप संकल्प शूर भी हैं। 50वें दीक्षा कल्याण महोत्सव के अवसर पर आचार्यप्रवर ने घोषणा करवाई की मुमुक्षु संख्या प्रवर्धमान हो, अब तक लगभग 25 बहनों एवं 9 भाइयों ने संस्था में प्रवेश प्राप्त किया है।
साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी के तृतीय चयन दिवस पर साध्वी एवं समणी समाज की ओर से यह मंगलकामना करती हूँ आप चिरायु हो और निरामय रहते हुए हम सबकी सार-संभाल करती रहें।
राज्य मंत्री राव साहब दानवे ने पूज्य प्रवर की अभ्यर्थना करते हुए कहा कि मैं आचार्य श्री से एक आशीर्वाद चाहता हूँ कि आप अगले वर्ष फिर से यहाँ आएं और मुझे और बिरला जी को मोदी जी की मंत्री परिषद् के सदस्य के रूप में फिर से यहां बुलाएं। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि आज हम युगपुरूष, महान तपस्वी, सिद्धयोगी के दीक्षा कल्याण महोत्सव समारोह में आये हैं।
कार्यक्रम के शुभारम्भ में ज्ञानशाला के 50 ज्ञानार्थियों ने वैरागी वेश में पूज्यप्रवर के समक्ष अपनी प्रस्तुति दी। मुनिवृंद, साध्वी वृंद एवं समणी वृन्द ने पृथक-पृथक गीत से पूज्यप्रवर की अभ्यर्थना में सुमधुर गीतों की प्रस्तुति दी। समण श्रेणी की ओर से तैयार वर्धापना पत्र साध्वीवर्या जी के माध्यम से मुख्य मुनि प्रवर द्वारा पूज्य प्रवर को समर्पित किया गया।
युवा दिवस के उपलक्ष में अभातेयुप अध्यक्ष रमेश डागा ने अपनी भावना व्यक्त करते हुए आचार्यप्रवर के 50वें दीक्षा कल्याण वर्ष के अंतर्गत परिषदों के माध्यम से किये गए कार्यों की झलक प्रस्तुत की। अभातेयुप प्रबंध मंडल एवं सदस्यों ने पूज्य प्रवर की अभिवंदना में गीत की प्रस्तुति दी। इस अवसर पर अभातेयुप महामंत्री अमित नाहटा, पदाधिकारियों एवं सदस्यों ने शब्द चित्र की प्रस्तुति दी। आचार्य प्रवर ने अभातेयुप सदस्यों एवं जनता को पारिवारिक सदस्यों की दीक्षा में बाधक नहीं बनने का संकल्प करवाया। आचार्य प्रवर के संसार पक्षीय दुगड़ परिवार की ओर से एक डॉक्यूमेंट्री के माध्यम से 50 वर्ष पूर्व के आचार्य श्री महाश्रमणजी के दीक्षा प्रसंग का मंत्र मुग्ध करने वाला दृश्य प्रस्तुत किया गया। आचार्य प्रवर के संसारपक्षीय ज्येष्ठ भ्राता सुजानमल जी दुगड़ ने आज्ञा पत्र की प्रतिलिपि पूज्य प्रवर को अर्पित की। दुगड़ परिवार ने गीत के माध्यम से आचार्यश्री की अभ्यर्थना की।
साध्वी प्रमुखा श्री, मुख्य मुनि श्री एवं साध्वी वर्या श्री के माध्यम से 'संवाद भगवान से' कार्यक्रम की अनुपम प्रस्तुति हुई। अखिल भारतीय तेरापंथ टाइम्स, युवादृष्टि, जैन भारती एवं अन्य कई प्रकाशनों द्वारा प्रकाशित आचार्य महाश्रमण दीक्षा कल्याण विशेषांक पूज्यप्रवर को समर्पित किये गये। व्यवस्था समिति अध्यक्ष सचिन पीपड़ा ने स्वागत भाषण दिया। महासभा के मुख्य प्रबंध न्यासी महेन्द्र नाहटा ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। महासभा अध्यक्ष मनसुख सेठिया ने पूज्यप्रवर की अभिवंदना में अपनी भावना अभिव्यक्त करते हुए सेवा साधक श्रेणी के शुभारम्भ की घोषणा की। कार्यक्रम के प्रथम सत्र का संचालन मुनि दिनेश कुमारजी ने एवं द्वितीय सत्र का सञ्चालन मुख्य मुनि महावीर कुमार जी ने किया।
मंगलकामना स्वयं के प्रति
मैं मुनि श्री सुमेरमलजी स्वामी 'लाडनूं' का स्मरण कर रहा हूं। वे मेरे दीक्षा दाता थे, उन्हें मैं वंदन करता हूं। आचार्यश्री तुलसी ने मुझे आगे बढ़ाया और आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ने तो अपना पूरा दायित्व मुझे सौंप दिया था। मैं उन दोनों का श्रद्धा के साथ स्मरण करता हूं। मेरे संसार पक्षीय पिताजी श्री झूमरमलजी दुगड़, माताजी नेमा बाई ने मुझे धर्म की ओर आगे बढ़ाने, जोड़ने का प्रयास किया। भाईसाहब श्री सुजानमलजी के अनुशासन और साये में बहुत वर्ष रहने का मौका मिला। मेरी दीक्षा में भाई साहब का योगदान था। मेरा संन्यास का जीवन तेजस्वी से तेजस्वीतर, तेजस्वीत्तम बना रहे।
मंगलकामना धर्मसंघ के प्रति
साध्वीप्रमुखाजी का आज चयन दिवस है। आज तीसरा वर्ष शुरू हुआ है। आप भी धर्मसंघ को, साध्वियों, श्राविकाओं व अन्य संदर्भों में खूब अच्छी सेवा देते रहें। मुख्यमुनि, साध्वीवर्या, अन्य साधु-साध्वियां, समणियां व श्रावक-श्राविकाएं आध्यात्मिक सेवा करते रहें। सभी खूब विकास का कार्य करते रहें। मेरे सहदीक्षित मुनिश्री उदितकुमारजी स्वामी के भी आज दीक्षा के पचास वर्ष पूर्ण हुए हैं। मैं उनके प्रति भी मंगल कामना करता हूं। वे बहुश्रुत परिषद के सदस्य भी हैं। वे अपने ज्ञान व कर्मठता से धर्म संघ की सेवा करते रहें, अपनी साधना का भी विकास करते रहें।
आपका व्यक्तित्व और जीवन मार्गदर्शक है
आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत के रूप में समाज को नई दिशा देने का कार्य किया। आचार्य महाप्रज्ञजी विद्वान थे, उनकी लेखनी ने समाज को एक दर्शन देने का कार्य किया। आचार्य महाश्रमण जी ने तो एक इतिहास रच दिया। आपने तीन देश और 20 राज्यों में यात्रा कर आपने कितने लोगों के जीवन को परिवर्तित किया। पैदल चलकर समाज के अलग-अलग वर्गों के जीवन में अहिंसा के साथ दिशा देने का काम किया, करोड़ों लोगों को नशामुक्ति का संकल्प दिलाया। घने अंधकार जीवन जीने वालों को एक रोशनी देने का, दिया जलाने का काम किया। वह दिया अध्यात्म, धर्म और संस्कृति का दिया था। उस दिए से उनके जीवन परिवर्तन की राह बनी। आपने समाज के हर जाति, धर्म, वर्ग के मानव कल्याण के लिए कार्य किया। आपने व्यक्तित्व निर्माण के साथ उन्हें अहिंसा का मार्ग दिखलाया। आपका व्यक्तित्व और जीवन हम सबको मार्गदर्शन देता है। आपकी यात्रा वर्षों तक मानव कल्याण को दिशा देगी और देश व दुनिया में शांति, सद्भावना और नैतिकता का सन्देश देगी। आप सभी के आचार्य हैं, आपका योगदान हम सबको प्रेरणा देता रहेगा। आपकी प्रेरणा से यह सम्पूर्ण समाज सर्वजन हिताय के लिए काम करता है। मैं यही कामना करता हूँ कि आप शताब्दी तक जीएं और समाज को दर्शन देते रहें और दिये की तरह रोशनी देते रहें।