अरे प्यारे संतों !

गुरुवाणी/ केन्द्र

अरे प्यारे संतों !

अरे प्यारे संतो! सुविनीत संतो! सामने चलेंगे फकीर आ रहा है।
आर्यदेव बोले, अरे प्यारे संतो! सामने चलेंगे फकीर आ रहा है।।
श्वेत है चेहरा ज्ञान है गहरा। शासन सेवा में, कभी नहीं ठहरा।
प्रखर प्रवक्ता, दर्शन मनीषी, उपकार करने वाला फकीर आ रहा है।।
बचपन में मुझको, गुरु कालू माला। पिलाया उसी ने संयम का प्याला।
तुलसी गुरु के, चरणों में मुझको, सौंप देने वाला फकीर आ रहा है।।
संतो को लेकर, गुरु-द्वारे आए। श्रावक-श्राविकाएं, छाए दाए-बाए।
साश्चर्य खुली है, सबकी निगाहें, कौन? किससे मिलने वाला फकीर आ रहा है।।
हाथ पकड़कर गुरु साथ लाए। दीक्षा प्रदाता ने भाव सुनाए।
सोचा था मैंने, शिखरों चढ़ेगा, (नहीं सोचा मैंने, दृश्य वो दिखेगा)
खुशियां मनाने वाला फकीर आ रहा है।।
भक्ति से भरकर, कंबल ओढ़ाया। आर्यदेव ने भी, फिर फरमाया।
मुनिवर पधारे, राज में हमारे, पहली बार मिलने वाला फकीर आ गया है।
पानी ले लाओ, चरणों को धोऊं। उपकारी मुनिवर से, उऋण होऊं।
खुदा की खुदाई, और क्या गवाही, इंसानी देह में ये खुदा आ गया है।।
जिसने भी देखा, विस्मय में डाला। अजब मसीहा है, नेमा का लाला।
विनय समर्पण, जीवन दर्पण, इंसानी देह में ये खुदा आ गया है।
लय - अरे द्वारपालो