कण-कण गाता है

गुरुवाणी/ केन्द्र

कण-कण गाता है

धरती गाती है, अम्बर गाता है,
कण-कण गाता है।
जब इस महीतल पर मोहन मन मुस्काते हैं,
परमार्थ की साधना।
जन्म पावन है, लक्ष्य पावन है, मार्ग पावन है,
परमार्थ की साधना।।
शुक्ला नवमी, नव सूर्योदय, दसमी भाग्योदय है,
चवदस बोली चार दिशाएं, मुखरित जय-जय-जय है।
युग-युग मिले शासना, परमार्थ की साधना।।
एक ध्येय है, सतत तुम्हारा, बनना राग विजेता,
द्वेष टिके ना उस नौका में, जिसको तू है खेता।
खुद तर कर तारना, परमार्थ की साधना।।
श्री कालू का ध्यान धरा तब, मिला नया उजियारा,
संयम की शुभ स्वर्ण जयंती, वर्धाए जग सारा।
मंगल करें कामना, परमार्थ की साधना।।
आज मराठा, कल गुजराता, परसों राजस्थाना,
जह-जह चरण पड़ेंगे तेरे मानव मन मस्ताना।
उत्सव मय जालना, परमार्थ की साधना।।
(लय - सत्यम् िशवम् सुन्दरम्)