महाश्रमण महाकाव्य के हर पृष्ठ पर है साधना की सुवास

महाश्रमण महाकाव्य के हर पृष्ठ पर है साधना की सुवास

बूंद से सागर का परिचय पूछा जाए तो शायद वह असंभव है। आकाश में उदीयमान सूर्य का परिचय भी नहीं दिया जा सकता, उसका प्रकाश, उसकी ऊष्मा ही उसके परिचायक हैं। फूल का परिचय उसका विकसित रूप और सुगंध है। जिनका नाम स्वर्णिम इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है ऐसे महामहिम महामानव युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी का मैं क्या परिचय दूँ? आपके किन-किन गुणों को चुनूं? जैसे रसगुल्ले को जिधर से भी खाओ उधर से मीठा ही लगता है। वैसे ही आचार्य श्री महाश्रमण का जीवन जिधर भी देखो उधर गुण ही गुण दिखाई देते हैं।
''क्या लिखूं? कैसे लिखूं? कुछ समझ आता नहीं।
भाव भक्ति से भरा मन रुक भी तो पाता नहीं।।''
पर ह्रदय के सागर में जब भावनाओं के ज्वार-भाटे आते हैं तो हिलोरें मारती लहरों को होठों में दबाकर रखना संभव नहीं हो पाता। आचार्य श्री महाश्रमण जी के जीवन रूपी महाकाव्य के हर पृष्ठ पर साधना की सुवास है। हर पंक्ति में नई सोच, नई धारणा, नया दर्शन है। आपके विशद व्यक्तित्व, कुशल नेतृत्व एवं निष्णात नेतृत्व में निधि, सिद्धि, लब्धि, उपलब्धि और प्रसिद्धि का समागम है। आपकी सहजता, सरलता, निस्पृहता, निर्लिप्तता, निर्विकारता, आत्मीयता, पवित्रता और निश्छल व्यवहार में अनेक महापुरुषों की छवि नजर आती है।
आपश्री के ह्रदय में वैमनस्यता का विष नहीं, समन्वय और स्नेह का दरिया बहता है। आपके शरीर के रोम-रोम में दया, अनुकंपा व करुणा का महासागर लहरा रहा है। आपके नयनों में वत्सलता का निर्झर बह रहा है। आपके मुख मंडल पर असीम शक्ति की मुस्कान है। आपकी वाणी में आगम रूपी तत्व ज्ञान का पराग रहता है। आपके दिल में ज्ञान की सुगंध और आचार की सुंदरता है। आपके हर श्वास में आध्यात्मिक जागरण की गूंज है। आपके हाथों में आशीषों का आलोक है। आपके चरण कमलों में सिद्धि का स्थान है। आपके भीतर में अरिहंतों का वास है। आपका उपशम भाव विलक्षण है। कुल मिलाकर आपका व्यक्तित्व सत्यम शिवम सुंदरम की अभिव्यक्ति है। आपश्री की मंगल सन्निधि का एक-एक क्षण, मंगलदाई, सुखदाई एवं कल्याणकारी है। इसी कारण आप लोकप्रिय, सर्व वंदनीय, अर्चनीय हैं। आपश्री के बारे में जितना लिखे उतना ही अल्प है इसीलिए मैं कहती हूं- '
''शब्दों के ढांचे में कैसे बांध हूं, तेरी तस्वीर,
तेरा व्यक्तित्व है सागर सम गंभीर।
तेरे नयनों से बहता है, वात्सल्य का नीर,
लक्ष्य को सिद्ध करता है तेरे संयम का तीर।।''
गुरुदेव आपके विराट व्यक्तित्व के समक्ष मेरे शब्द छोटे पड़ जाते हैं। अनेकों प्रबुद्ध जन आप की स्तुति जिन उच्च शब्दों में करते हैं वे शब्द मेरे पास नहीं है। मेरे पास तो सिर्फ उच्च भाव है, श्रद्धा है, आस्था है। कहते हैं कि जैसे नभ में चमकते तारों को, सागर की तरंगों को, वर्षा के जल बिंदु को और मन के विचारधारा को गिनना असंभव है वैसे ही आचार्य श्री महाश्रमण जी के त्याग-तप व वैराग्य प्रधान जीवन की समस्त गुणराशि अकथनीय है। अंत में दीक्षा कल्याण दिवस के स्वर्ण जयंती की स्वर्णिम घड़ी की अभिवंदना में यही शुभकामना, मनोकामना कि प्रभु आप दीर्घायु हों, चिरायु हों, निरामय हों, शतायु हों। आपश्री युगों-युगों तक तक राज करें, मानवता तुम पर नाज करे, नित नूतन आगाज करें।
''गण गुलशन की बगिया में बनी रहे बसंत बहार।
तुम जियो हजारों साल, साल के दिन हो पचास हजार।।''