अनगिनत विशेषताओं के धनी-मेरे प्रभु
शिष्य ने पूछा– गुरु हमारे लिए क्यों जरूरी हैं? गुरु ने पुछा - ये बताओ मां हमारे लिए क्यों जरूरी है? शिष्य ने कहा - मां नहीं हो तो हम संसार में नहीं आ सकते। गुरु ने कहा - ठीक वैसे ही गुरु नहीं हो तो हम इस संसार से मुक्त नहीं हो सकते। वास्तव में शिष्य के लिए गुरु एक अनमोल उपहार है। गुरु एक ऊर्जा है, एक शक्ति है जो शिष्य की जीवन नैया को पार लगाता है। मेरे गुरु आचार्यश्री महाश्रमणजी एक फौलादी स्फटिक चट्टान का नाम है, जिसका हर कोना पवित्र, उजला, निर्मल, सौम्य, बेदाग और पारदर्शी है। महाश्रमण उस फौलादी संकल्प का नाम है जिनके लिए यह कहा जाए तो भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि 'झुकना कभी सीखा ही नहीं, चाहे बाधाओं ने घेरा हो, रूकना कभी जाना ही नहीं, चाहे मंजिल कितनी ही दूर हो।' महाश्रमण उस वीतरागता का नाम है जिसमें हर वक्त राग-द्वेष से मुक्त मैत्री की वर्षा होती है।
मेरे गुरु के संयम, वैराग्य और प्रखर पुरुषार्थ को देखकर एक घटना याद आती है - एक बार समुद्र की तरंगें चारों और से चट्टान पर निरंतर आघात कर रही थी। चट्टान में किसी तरह का उतार या चढ़ाव नहीं था। चट्टान के इस भाव को देखकर नाविक ने उससे पूछा तुम पर चारों तरफ से आघात हो रहे हैं फिर भी तुम इतनी शांत। गंभीर स्वर में उसने कहा अगर मैं इसी में उलझकर रह गई तो दूर से आगत अतिथि को विश्राम देने के सौभाग्य से वंचित रह जाऊंगी। आचार्य महाश्रमणजी देश-विदेश की इतनी प्रलंब यात्राएं कर रहे हैं, इतना श्रम, अनेक परिस्थितियां, उतार-चढ़ाव, सर्दी-गर्मी आदि सहन कर रहे हैं फिर भी मन में कोई ऊहापोह नहीं, हमेशा मुस्कुराता चेहरा, आगमवाणी में मस्त। यदि कोई इनको पूछे, इतना सब क्यों? तो मेरे ख्याल से शायद मेरे गुरु का यही जवाब होगा कि यदि इन सबमें उलझकर मैं बैठ जाऊंगा तो जन्मों-जन्मों के संचित कर्म को मैं कैसे तोड़ पाऊंगा? यदि ये सब सहन नहीं करूंगा तो मैं अपनी सघन निर्जरा से वंचित रह जाऊंगा और जल्द से जल्द मैं अपनी मंजिल को कैसे प्राप्त कर पाऊंगा ? इसी चिंतन के कारण वो हम सबके मोटिवेटर हैं। लगता है आचार्यश्री महाश्रमणजी अपने पूर्व जन्मों की विशिष्ट तप-त्याग एवं संयम की साधना के फलस्वरूप अनगिनत विलक्षणताओं को साथ में लेकर इस संसार में जन्मे हैं। मेरे प्रभु की अनगिनत विलक्षणताओं को बता सकूं मैं इतनी सक्षम तो नहीं हूं फिर भी कुछ बताने की कोशिश कर रही हूं :-
भविष्यदृष्टा– जब मैं पारमार्थिक शिक्षण संस्था में थी तब कुछ समय बाद स्वास्थ्य ज्यादा ही गिरने लगा। धीरे-धीरे सब के लिए चिंतन का विषय बन गया। माता-पिता इधर-उधर दिखाने लगे। कोई राहत नहीं मिली, चारों ओर से उनको कहा जाता इनको दीक्षा मत दो, इनके योग ही नहीं हैं और कुछ रास्ता अपना लो। मैंने कहा दीक्षा के अलावा अन्य कोई मार्ग मेरे लिए संभव नहीं है। सन् 2006 में पूज्यप्रवर आचार्य महाप्रज्ञजी लुधियाना में विराजमान थे। मैंने युवाचार्य प्रवर से निवेदन किया - मैं क्या करूं? मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है। युवाचार्यश्री महाश्रमणजी ने फरमाया - क्यूं? क्या हुआ? मैंने निवेदन किया मेरा स्वास्थ्य ज्यादा ही डाऊन हो रहा है। मैं क्या करूं? घर जाऊं या यहां रहूं ? आपश्री ने फरमाया - तुम्हारी क्या मानसिकता है? मैंने कहा मानसिकता तो दीक्षा की है पर मुझे दीक्षा कौन देगा? क्या आप मुझे दीक्षा देंगे? इस उलझन के साथ आंखों में आंसू देख आपश्री ने वात्सल्यभरी मुस्कान के साथ फरमाया तुम क्यों चिंता करती हो? मैं बैठा हूँ ना? तुम्हारा स्वास्थ्य भी ठीक हो जाएगा और दीक्षा भी हो जाएगी, तुम्हें और कुछ चाहिए क्या? एक ही क्षण में मेरे प्रभु ने मुझे सब कुछ दे दिया और कई ज्योतिषियों की वाणी भविष्यवाणी गलत हो गई। आज दीक्षा के 11 साल हो गए। वास्तव में जिसके सिर पर ऐसे गुरु का वरदहस्त होता है वहां शुभ ही शुभ होता है। वही मेरे दीक्षा गुरु बने।
करुणा के अथाह सागर– अभी पुणे से औरंगाबाद की ओर पूज्यप्रवर का विहार हो रहा था। एक दिन भूल से रास्ता दूसरा ले लिया बाद में पता चलने पर हम तीन साध्वियां वापिस मुड़ी। लगभग 5-6 किमी चलते रहे फिर हम लोग पानी पीने के लिए रूके। उसी रास्ते पर पूज्यप्रवर का पधारना हुआ, हम लोगों ने वंदना की, आपश्री ने प्रश्न भरी दृष्टि से हमको देखा, हमने निवेदन किया आज चक्कर पड़ गया। इतने बड़े धर्म संघ के नेता जो एक छोटी साध्वी के लिए विहार करते रूक गए, यह उनकी उदारता थी। आपश्री ने फरमाया तुम्हारा यह बोझ संतों को दे दो। हमने मनाही के रूप में निवेदन किया। जहां ऊपर सूर्य अपना आतप दे रहा था और धरती नीचे से तप रही थी वहां पर ज्योतिचरण वात्सल्यरूपी शीतलता की वर्षा करा रहे थे। हमें करुणा रस से तृप्त कर रहे थे। ठिकाने पर पधारे तब साध्वीवर्याजी ने निवेदन किया कि तीन साध्वियां नहीं आई हैं। आपश्री ने फरमाया वो हमें रास्ते में मिल गई थीं, अब तो वो आती ही होंगी, रूचिर और दो बहिनें गौरव-नवीन थी। वो प्यासी होगी, उन्हें पानी पीला दो। सतियां सामने आई, पानी पिलाया और बताया कि गुरुदेव ने हमें भेजा है। वास्तव में वो पल कुछ अलग से ही थे। जो करुणानिधान की करुणा को पाकर आह्लाद भर रहे थे।
अनन्त ऊर्जा के धनी– कहा जाता है पर्वत में ऊंचाई होती है लेकिन गहराई नहीं होती, सागर में गहराई होती है पर ऊंचाई नहीं होती। पर मेरे प्रभु इन दोनों के समन्वय का रूप हैं। भीलवाड़ा चतुर्मास में संसारपक्षीय भतीजा हमारे पास आया बोला - बुआ महाराज ! आज तो चमत्कार हो गया। हमने कहा- क्या हुआ? उसने कहा- देखो पिताजी का हाथ। हमने पूछा- यह कैसे हुआ? संसारपक्षीय भाई ने बताया गुरुदेव का मंगलपाठ सुना और हाथ पूरा ऊपर करके बताया कि यह ठीक हो गया। जहां भयंकर एक्सीडेंट के बाद डॉक्टर ऑपरेशन करके भी गारंटी नहीं दे सकते थे वहां एक मंगलपाठ से ठीक हो गए। कुछ समय बाद संसारपक्षीय भाई का स्वास्थ्य खराब हुआ, बी.पी., शुगर एकदम बढ़ गया डॉक्टर ने काफी ट्रीटमेन्ट किया पर ठीक होने का नाम ही नहीं, तब संसारपक्षीय भाई ने पूज्य प्रवर का एक फोटो लेकर तकिये के नीचे रख दिया और कहा कि चिंता करने वाले अब ये हैं इन पर छोड़ देते हें। ऐसा हुआ कि कुछ समय में वह काफी ठीक होने लगा। यह है मेरे प्रभु की प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष ऊर्जा का चमत्कार। प्रश्न होता है यह सब कैसे हो सकता है? वहां समाधान मिलता है मेरे गुरु की परोपकार की भावना, उत्कृष्ट कोटि की साधना और उत्कृष्ट कोटि की सहिष्णुता के कारण यह संभव हो सकता है।
आकर्षक व्यक्तित्व– आचार्य प्रवर कई बार फरमाते हैं कि चेहरे की सुंदरता उतनी महत्वपूर्ण नहीं है जितनी भीतर की सुंदरता है। परंतु आचार्य प्रवर का व्यक्तित्व तो भीतर और बाहर दोनों ओर से ही सुंदर है, जो सबके लिए आकर्षण का विषय बना हुआ है। मुंबई चतुर्मास के बाद पूज्य प्रवर शहर में भ्रमण करवा रहे थे। दादर में एक स्थानकवासी युवक दर्शन करने आया। उसने हमें कहा कि मुझे आपके गुरु के दर्शन करने हैं। हमने कहा 4 बजे मंगलपाठ और 8 बजे चरण स्पर्श का समय है। हाथों-हाथ वह युवक, जो स्थानकवासी था, अपने परिवार को लेकर आया, देखते ही आचार्य प्रवर से आकर्षित हुआ और कहा मैं तो इनसे बहुत ही प्रभावित हुआ। हमने पुछा कैसे? उसने कहा पहले मैंने सुना था, फिर सोचा इतने लोग इनके पास आते हैं तो कुछ न कुछ इनमें जरूर होगा, फिर मैंने इनका फोटो देखा तो लगा इतना आकर्षक व्यक्तित्व और जब अभी मैंने इनके दर्शन तब इनका भीतर-बाहर का सौंदर्य, इनका तेज, पवित्रता, मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता। इतने लोगों का आना, इनके बारे में इतना बताना, लेकिन कब से दर्शन करने की इच्छा आज पूरी हुई। वास्तव में आपके गुरुदेव महान हैं। अगले दिन लगभग पूरे दिन वह युवक गुरुदेव के सान्निध्य में रहा।
ऐसे गुरु की अभ्यर्थना करते-करते लगता है कि यह जिह्वा और हाथ सब पवित्र हो गया है। ऐसे गुरु जो हमें प्राप्त हैं, ऐसा तेरापंथ हमें विरासत में मिला है। मेरी जीवन नैया के तारणहार, दीक्षा प्रदाता, जिनके लिए जनता की सेवा भगवान की सेवा के तुल्य है, जिनके लिए वे सब कुछ न्यौछावर करने के
लिए तैयार रहते हैं, ऐसे महान गुरु के 50वें दीक्षा कल्याण महोत्सव, जन्मदिवस और पट्टोत्सव के उपलक्ष में यही मंगल कामना करती हूं कि आप हमेशा निरामय रहते हुए हम सबकी डोर को थामते हुए तेरापंथ धर्मसंघ का युगों-युगों तक संचालन करते रहें और आपकी छत्र-छाया हमेशा हम पर बनी रहे यही मंगल कामना।