महासूर्य की रश्मि बनूं मैं
महासूर्य की रश्मि बनूं मैं, आर्य मुझे वरदान चाहिए।
रहो निरामय ज्योतिवलय तुम, चरणों में बस स्थान चाहिए।।
तात तुम्हीं हो मात तुम्हीं हो, मेरे तो प्रभु भ्रात तुम्हीं हो,
है सर्वस्व समर्पित तुझको, भाग्य विधाता नाथ तुम्हीं हो।
सफल बने जीवन का हर क्षण, वीर्य और उत्थान चाहिए।।
शीतल सन्निधि लगती सुखकर, प्रमुदित रहता है मन मधुकर,
संयमनिष्ठा श्रम सम शम की पुण्यत्रयी है तेरी सहचर।
ध्यान योग की करूं साधना, तुम जैसा अवधान चाहिए।।
दीर्घकाल तक मिले शासना, दीक्षोत्सव की सदी मनाएं,
दिग्विजयी यात्रा हो तेरी, यशोगान कर तुम्हें बधाएं।
कैसे पाऊं सिद्धि सदन मैं, पथदर्शक विज्ञान चाहिए।।