अभिनन्दन वन्दन शत बार

अभिनन्दन वन्दन शत बार

अभिनन्दन वन्दन शत बार।
विश्वव्यापी समदर्शी, महामानव अवतार।।
तुम महासूर्य! जगत को बांटो ज्योतिर्मय ज्ञान आलोक।
तुम महामेघ! करूणा दृष्टि बरसाते जो भयाकुल लोग।
सब गुरुओं की अर्जित क्षमता, महोदधि साकार।।
तुम सिद्धपुरूष महायोगी, राग द्वेष विजता हो।
जिनशासन के शिखरपुरूष, जिणवाणी प्रचेता हो।
तुम चिदानन्द अर्हत् श्रेणी में, पाकर धन्य हुआ संसार।।
रोमांचक प्रभु की यात्राएं, काठमांडु साक्षी नेपाल।
रूके नहीं ये चरण तुम्हारे, आए कितने भी भूचाल।
सुमेरू सम नहीं रोम प्रकम्पित, बने संघ प्राकार।।
सौहार्द, स्नेह सहानुभूति का, अद्भुत सीन निहारा।
घोर विरोधी नत मस्तक, उतरा अहं का पारा।
प्रखर साधना तेरी, अनुत्तर महाश्रमण दरबार।।