आराधना आराध्य की
हे आराध्य देव ! हे स्वमेव !
दीक्षोत्सव की शुभ बेला पर उतरे हैं धरती पर देव,
हे सरदारशहर के तप: पूत ! मां नेमा के तुम सपूत,
हे दिव्य दिवाकर ! भुवन भास्कर !
देव कुंवर सी छटा अद्भुत।
नीलांचल गगन से उतरे, मां नेमा के मन को भाए,
दूगड़ कुल के उजियारे, तुलसी गुरु महाप्रज्ञ को लुभाए।
दीक्षोत्सव की शुभ बेला पर, हर्षित है अति मन मेरा,
मोहन मुदित महाश्रमण तुम,
फैलाओ जग में उजियारा।