भौतिक और आर्थिक विकास के साथ नैतिक विकास हो : आचार्यश्री महाश्रमण
भीलवाड़ा, 18 सितंबर, 2021
भाद्रवा शुक्ला द्वादशी/त्रयोदशी। तेरापंथ के आद्यप्रवर्तक आचार्यश्री भिक्षु का चरमोत्सव, महाप्रयाण दिवस त्रयोदशी। आज ही के दिन महामना भिक्षु का सिरियारी में महाप्रयाण हुआ था। जिसे हमारे चतुर्थाचार्य जयाचार्य ने चरमोत्सव के रूप में एक उत्सव प्रदान किया था। आज परम पावन भिक्षु का 219वाँ चरमोत्सव आयोजित है। आचार्यश्री भिक्षु के परंपर पट्टधर, वर्तमान के भिक्षु आचार्यश्री महाश्रमण जी ने श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए फरमाया कि आचार्य को उपमित करने के लिए, विराटता को बताने के लिए सूर्य का उपयोग शास्त्रकार ने किया है। इंद्र का भी उपयोग करना पड़ा तब जाकर शास्त्रकार मानो आचार्य को प्रस्तुत करने में समर्थ हुए। आचार्य का कितना ऊँचा स्थान है। आज परमपूज्य, परम वंदनीय आचार्य भिक्षु का महाप्रयाण दिवस है, जिसे हम चरमोत्सव कहते हैं। आचार्य भिक्षु का व्यक्तित्व विशिष्ट था। उनका श्रुत ज्ञान भी सामान्य नहीं था। उनका अपना ज्ञान, फिर प्रस्तुतिकरण का तरीका विशेष था। नव पदार्थ की चौपाई का स्वाध्याय करते-करते अच्छी बातें मिल सकती हैं। ज्ञात बातों की पुनरावृत्ति हो सकती है।
अनेक ग्रंथ आचार्य भिक्षु के हैं। इनसे जाना जा सकता है कि आचार्य भिक्षु का ज्ञान कितना निर्मल रहा होगा। उनकी शील संपदा को देखें, आचार पक्ष को देखें तो उनकी क्रांति में दो मूल तत्त्व आचार और विचार। उनमें शील की सौरभ का भी आभास किया जा सकता है। उनमें ज्ञान-श्रुत रूपी सूर्य का तेज था। उनकी बुद्धि बड़ी निर्मल थी। ग्रंथों का अध्ययन करना एक बात है, बुद्धि की स्फूरणा होना अलग बात है। ग्रंथों के पढ़ने के साथ बुद्धि का योग हो तो वो ज्ञान और विभूषित हो सकता है। आचार्य भिक्षु के सामने विरोध भी आए। विरोधों को भी झेलने की धृति-शक्ति हो। उनका विरोध चलता रहा, वे अपने पराक्रम से आगे बढ़ते रहें।
आखिर चलते-चलते वि0सं0 1859 का चतुर्मास पाली में किया। अगला चातुर्मास सिरियारी करने पधारे। सात साधुओं के साथ चातुर्मास किया। उस समय सिरियारी में भी अनेक घर तेरापंथी के थे। 78वें वर्ष में उनकी चाल तेज थी। श्रावण मास में स्वास्थ्य में श्रान्तता लगने लगी। भाद्रवा सुदी चतुर्थी को लगने लगा कि अब समय आ गया है, मृत्यु की तैयारी करने लगे। एकादशी को दवा का आगार रख आहार का त्याग कर दिया। द्वादशी को कच्ची हाट से पक्की हाट पधारे। मुनि रायचंद जी ने कहा कि स्वामिन! लगता है, पुद्गल क्षीण पड़ रहे हैं। आचार्य भिक्षु ने अनशन स्वीकार कर लिया। बाद में संकेत से लगता है कि उनको विशेष ज्ञान, अवधि ज्ञान भी हुआ होगा। कायोत्सर्ग की मुद्रा में विराजे, पुद्गल क्षीण हुए, आत्मा देह मुक्त हो गई। वि0सं0 1860, मंगलवार, भाद्रवा शुक्ला त्रयोदशी को स्वामीजी ने महाप्रयाण कर दिया। ऐसे एक विशिष्ट संत हमारे धर्मसंघ को प्रथम आचार्य के रूप में प्राप्त हुए। दुनिया का मानो भाग्य होता है कि बीच-बीच में कभी-कभी यत्र-तत्र महापुरुष पैदा होते रहते हैं। वे आते हैं, कुछ करते हैं, दुनिया को कोई राह, चाह दिखा देते हैं। और कभी आगे बढ़ जाते हैं। जीवन में चाह भी हो, राह भी हो और उत्साह जग जाए, फिर आदमी कहीं पहुँच सकता है। आज के चरमोत्सव के दिन मैं महामना भिक्षु के प्रति बार-बार श्रद्धार्पण करता हूँ। चरमोत्सव के उपलक्ष्य में पूज्यप्रवर ने स्वरचित गीत‘जिनशासन, पंचानन को, मेरा सविनय शत्-वंदन।’ का सुमधुर संगान किया। आज तो भिक्षु स्वामी का चरमोत्सव का दिन है। आगे भिक्षु स्वामी के जन्मोत्सव का तीन सौ वाँ दिवस लगने का दिन आने वाला है। वि0सं0 2082, सन् 2025 में लगने वाला है। और सन् 2026, वि0सं0 2083 में 300 वर्ष पूरे होने वाले हैं। तो पूरे वर्ष स्वामी जी का 300वाँ जन्म दिवस ज्ञान, स्वाध्याय एवं त्याग-तपस्या से मनाएँ। आज द्वादशी भी साथ में जुड़ी हुई है। हमारे धर्मसंघ के सप्तम आचार्य परम पूज्य आचार्यश्री डालगणी का भी आज महाप्रयाण दिवस है। दो आचार्यों का महाप्रयाण दिवस एक ही दिन आ जाना इतिहास की मानो विरल घटना है। आज ही के दिन परम पूज्य डालगणी ने लाडनूं में अंतिम श्वास लिया था। हमारे धर्मसंघ के एक तेजस्वी आचार्य के रूप में डालगणी की ख्यात है। उन्होंने लगभग 12 वर्ष तक धर्मसंघ की सेवा की थी। वे एक ऐसे आचार्य थे जो पूर्वाचार्य द्वारा नियुक्त नहीं थे, धर्मसंघ के द्वारा मनोनीत आचार्य हुए थे। वे विलक्षण कोटि के विशेष आचार्य थे। उनके प्रति भी मैं श्रद्धार्पण बार-बार करता हूँ। साथ-साथ आचार्य महाप्रज्ञ को भी वंदन करता हूँ। उन्होंने भी भाद्रव शुक्ला द्वादशी को मुझे गंगाशहर में आशीर्वाद प्रदान किया था, युवाचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया था। उनकी कृपा आज के दिन उन्होंने अपना उत्तरीय मुझे अपने हाथों से ओढ़ाया था। मैं उनको भी श्रद्धार्पण करता हूँ। इस तरह आज का दिन विशेष हो गया है। हम पूर्वाचार्यों का स्मरण करते हुए आगे बढ़ते रहें। मुनि केशि और मुनि अर्हम ने पूज्यप्रवर से अठाई का प्रत्याख्यान लिया। संघगान के साथ कार्यक्रम पूर्ण हुआ। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला पूज्यप्रवर के श्रीचरणों में दर्शनार्थ पहुँचे। पूज्यप्रवर ने मंगल उद्बोधन प्रदान करते हुए फरमाया कि अभी लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला उपस्थित हैं। हमने अहिंसा यात्रा शुरू की थी, अब तो सातवाँ वर्ष भी संपन्नता के निकट है। अहिंसा यात्रा के तीनों उद्देश्यों के बारे में पूज्यप्रवर ने फरमाया। आचार्य तुलसी ने अणुव्रत की बात चलाई थी, जिससे आदमी अच्छा बन सके। लंबी यात्राएँ भी हुई थीं। आचार्य महाप्रज्ञ जी ने भी अहिंसा यात्रा की थी। प्रेक्षाध्यान-योग के द्वारा उन्होंने अच्छा रास्ता दिखाने का प्रयास किया था। भारत के पास संपदा के रूप में कितने अच्छे ग्रंथ, संत और पंथ हैं। लोकतांत्रिक प्रणाली वाले विशाल देश के लोकसभा अध्यक्ष का पधारना एक महत्त्वपूर्ण बात है। भारत में भौतिक, आर्थिक विकास के साथ नैतिकता की शक्ति का विकास भी रहे। आध्यात्मिकता का विकास और शिक्षा का विकास रहे। स्वर्ग से भी ऊँची चीज आध्यात्मिकता होती है।
साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी ने कहा कि पूज्यप्रवर लंबी यात्रा कर राजस्थान पधारे हैं। आप अपनी साधना के साथ लोककल्याण के कार्य में संलग्न हैं। लोकसभा अध्यक्ष का पूज्यप्रवर की सन्निधि में पधारना विशेष बात है। लोकसभा अध्यक्ष का यहाँ पधारना हमारे देश को एक नई दिशा दिखाएगा। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि आपके भीलवाड़ा चातुर्मास ने पूरे राजस्थान को प्रकाशित किया है। तेरापंथ संप्रदाय समूचे देश के अंदर सामाजिक, आर्थिक और आध्यात्मिक परिवर्तन करने में इनका बहुत बड़ा योगदान है। आपदा के समय संपूर्ण समाज आपके निर्देश में सेवा और समर्पण का कार्य करता है। व्यवस्था समिति अध्यक्ष प्रकाश सुतरिया ने ओम बिरला का स्वागत किया। कोटा सभा मंत्री धर्मचंद जैन ने पूज्यप्रवर से कोटा में ज्यादा से ज्यादा प्रवास करवाने की विनती की। बीजेपी जिला अध्यक्ष लादुलाल तेली ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। ओम बिरला के साथ सुभाष बहरिया व एस0पी0 जोशी भी उपस्थित थे। व्यवस्था समिति द्वारा ओम बिरला एवं अन्य समागत विभिन्न संस्थाओं के प्रमुखों का सम्मान किया गया।
समणी कुसुमप्रज्ञा जी, समणी अमनप्रज्ञा जी, समणी प्रणवप्रज्ञा जी, मुनि राजकरण जी ने गीत के माध्यम से अपनी श्रद्धांजलि परमपूज्य भिक्षु के प्रति अर्पित की। मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि आचार्य भिक्षु का व्यक्तित्व बहुआयामी व्यक्तित्व था। वे एक महान साधक और रत्नत्रय के आराधक थे। वे एक महान दार्शनिक, महान तार्किक और महान चिंतक भी थे। मुख्य मुनिप्रवर ने कहा कि आचार्य भिक्षु एक ऐसे महापुरुष थे, जिनका व्यक्तित्व बहुत विराट था। वे गृहस्थ राजा तो नहीं बने, किंतु मुनि बनकर के वे चारित्रात्माओं के सम्राट बने। त्यागियों के मुकुट मणी बने और तत्त्वज्ञान के विद्वान बने। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने कहा कि आज ही के दिन आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने मुनि महाश्रमण जी को भावी भिक्षु के पद पर स्थापित कर दिया था।