सभक्ति कृतज्ञता : निर्माण में लगे उस बलिदानी वक्त के प्रति
निर्माण शब्द अपने आप में एक महत्वपूर्ण शब्द है। सबसे कठिन एवं उपयोगी कार्य है- किसी व्यक्ति के जीवन का निर्माण करना। तेरापंथ धर्मसंघ व्यक्तित्व निर्माण एवं सुसंस्कार संपादन की एक सुन्दर शिल्पशाला है। यहां शिखर पुरुष आचार्यों से लेकर प्रायः सभी चारित्रात्माएं अपने शिष्य संपदा एवं आने वाली नई पीढ़ी का बखूबी निर्माण करने में अपने श्रम, समय एवं शक्ति का नियोजन करते हैं। आचार्यों के निर्देशानुसार समणी एवं साध्वी समाज के निर्माण एवं विकास का मुख्य दायित्व यहां साध्वीप्रमुखाश्रीजी पर होता है। कोई भी साध्वीप्रमुखा इस पद पर प्रतिष्ठित होकर ही निर्माण का कार्य करते हैं, ऐसा नहीं है।
वर्तमान साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी को साध्वीप्रमुखा पद पर सुशोभित हुए दो वर्ष संपन्न हो रहे हैं। आचार्यप्रवर के निर्देशानुसार संघ की हर एक साध्वी का जीवन निर्माण करना आज आपश्री का प्रमुख दायित्व बन गया है और आपश्री इस दायित्व को बखूबी वहन भी कर रहे है। पर आपश्री बहुत पहले से ही अनेकों के निर्माण में सचेष्ट रत रही हैं, इसकी मैं भी साक्षी रही हूं। मैं आज से 34-35 वर्ष पूर्व पीछे देखूं तो आपश्री द्वारा मेरे ही जीवन निर्माण के कुछ प्रसंग साक्षात् हो जाते हैं, जो बड़े ही आह्लादकारी एवं कृतज्ञता से भरपूर नतमस्तक करने वाले हैं। श्रद्धेया साध्वी प्रमुखाश्रीजी के तृतीय चयन दिवस पर मैं उन प्रसंगों से एक का उल्लेख कर श्रद्धेया साध्वी प्रमुखाश्रीजी के पावन श्रीचरणों में अपनी पंक्ति समर्पित कर धन्यता का अनुभव कर रही हूं।
बात उस समय की है जब आपश्री न तो मुख्यनियोजिकाजी थे और न ही समणी नियोजिका। उस समय आपश्री अपने ग्रुप के लीडर थे और कुछ समय बाद पारमार्थिक शिक्षण संस्था के निर्देशिका पद पर। मैं मेरा महान सौभाग्य मानती हूं कि उस समय मुझे भी एक नवदीक्षित समणी के रूप में आपश्री के ग्रुप की एक सदस्या बनने का गोल्डन चांस प्राप्त हुआ। सन् 1989 में गणाधिपति पूज्य गुरुदेवश्री तुलसी के महान् अनुग्रह से पा.शि.सं. के अन्तर्गत ब्राह्यी विद्यापीठ की शिक्षा प्राप्त करने से पहले ही मेरी समणी दीक्षा हो गई। उस समय ब्राह्मी विद्यापीठ के प्राक् स्नातक प्रथम वर्ष में मेरा प्रवेश मात्र ही हुआ था। जब मेरी दीक्षा हुई आपश्री विदेश यात्रा पर पधारी हुई थी। समणी नियोजिका जी एवं ग्रुप के रत्नाधिक समणी अक्षय प्रज्ञाजी ने चिंतनपूर्वक मुझे प्राक् स्नातक प्रथम वर्ष का कोर्स अस्खलित रूप से चालू रखने के लिए ब्राह्यी विद्या पीठ की रेगुलर स्टूडेंट बना दिया। मैं हमारे प्रवास स्थल अमृतायन से प्रतिदिन नियमित रूप से अध्ययन करने हेतु काॅलेज जाने लगी। कुछ समय बाद जब आपश्री विदेश से लौटी, मेरे अध्ययन, कंठस्थ आदि के बारे में सारी जानकारी प्राप्त हुई। जब आपश्री को पता लगा कि मैं प्रतिदिन अध्ययन हेतु ब्राह्यी विद्यापीठ जाया करती हूं, आपको यह उचित नहीं लगा। आपश्री का यह चिंतन था कि नवदीक्षित को सबसे पहले आचार, व्यवहार एवं संस्कार का समुचित प्रशिक्षण दिया जाए एवं उनके कंठस्थ ज्ञान पर ज्यादा ध्यान दिया जाए।
आपश्री मुझे रात्रि 2 बजे से 3 बजे तक 15-15 मिनिट के चार पीरियड देते। उसके बाद मैं पुनः निद्रा की गोद में चली जाती और आपश्री अपनी दिनचर्या-साधना में लीन हो जाते। एक सामान्य नवदीक्षित समणी के विकास एवं निर्माण के प्रति आपश्री का इतना उदार दृष्टिकोण, ऐसी धुन के स्मरण मात्र से मैं आह्लाद मिश्रित आश्चर्य में विस्फुरित सी हो जाती हूं। मैं मानती हूं श्रदेया साध्वीप्रमुखाश्रीजी के इस तृतीय दीक्षा दिवस पर आपश्री द्वारा पढ़ाया हुआ वह पाठ ही मुझे कुछ लिखने की प्रेरणा दे रहा है। मैं आपश्री के उस उपकार से उऋण हो सकूं, संभव ही नहीं है। बस इन टेढ़ी-मेढ़ी पंक्तियों को उकेरकर कृतज्ञता संपूरित भक्ति भाव ही समर्पित कर सकती हूं। मैं आपश्री के स्वस्थ तन-मन की हार्दिक मंगलकामना करती हूं। परमपूज्य गुरुदेवश्री के निर्देशन में आपश्री के सुदीर्घ सफल नेतृत्व की शुभकामना करती हूं।