ज्ञान का खजाना भरने का होता रहे प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण
महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमणजी ने मंगल देशना प्रदान कराते हुए फरमाया कि हमारे जीवन में ज्ञान का बहुत महत्व है। सम्यक् ज्ञान का अति महत्व है। एक शब्द है ज्ञान और दूसरा है चारित्र। ज्ञान के अभाव में व्यक्ति अनजाने में गलतियां कर लेता है। ज्ञान एक प्रकार से प्रकाश है और अज्ञान अंधकार है।
अज्ञान एक कष्ट है। गुस्सा-अंहकार आदि पाप है। इनसे भी बड़ा पापों का विषय अज्ञान है क्योंकि अज्ञान के आवरण के कारण आदमी अपने हित और अहित का बोध नहीं कर पाता है। इसलिए हमें जीवन में सम्यक् ज्ञान के विकास का प्रयास करना चाहिए। नौ तत्वों को अच्छी तरह जान लेने से व्यक्ति चारित्र की दिशा में अच्छी गति कर सकता है।
पूज्यप्रवर ने फ़रमाया कि खुद का ज्ञान खुद के काम आता है। दूसरों के भरोसे नहीं रहना चाहिए। आपदा-विपदा कभी भी हो सकती है, ज्ञान एक प्रकार की तलवार है, अग्नि है। अग्नि से अंधकार को दूर किया जा सकता है, ज्ञानरूपी तलवार से अज्ञान रूपी अंधेरे को छेदा जा सकता है। हमारे जीवन ने सम्यक् ज्ञान का विकास होना चाहिए। हम ज्ञान का खजाना भरते रहें ऐसा प्रयास होता रहे।
गुरुदेव तुलसी छोटे संतो को फरमाते थे कि तुम लोग तत्वज्ञान का विकास करो। स्वाध्याय से ज्ञान का विकास हो सकता है। कर्म निर्जरा के साथ अच्छा प्रकाश प्राप्त हो सकता है। प्रज्ञा-चेतना निर्मल हो जाए तो अच्छी-अच्छी बातें पकड़ में आ सकती है। पुराने समय में साधन सीमित थे, आज तो ज्ञान प्राप्ति के अनेकों साधन उपलब्ध हैं। अनेक ग्रन्थों से सद्ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।
ज्ञान के साथ चारित्र होना भी अच्छा है। शिक्षण संस्थान ज्ञान प्रदान करते हैं। ज्ञान के साथ बच्चों में अच्छें संस्कार भी आए, ऐसा प्रयास होता रहे तो बच्चों का अच्छा विकास हो सकता है। हम सम्यक् ज्ञान और तत्व बोध का सम्यक् प्रयास करें यह काम्य है।
जिला परिषद विद्यालय के सुभाष बायार ने आचार्यप्रवर के स्वागत में अपनी भावना अभिव्यक्त की। देउलगांव मही की तेरापंथ कन्या मंडल तथा ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमारजी ने किया।