काल से सीखें निष्पक्षता का पाठ: आचार्यश्री महाश्रमण
निस्पृह साधक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल देशना प्रदान कराते हुए फरमाया कि दुनिया में द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव ये चार दृष्टियां होती हैं। इनमें एक है काल और एक है क्षेत्र। हमें कोई कार्य करना है तो समय और स्थान चाहिए। ये दोनों ही न मिले तो कार्य करना असंभव हो सकता है। अनन्त आकाश फैला हुआ है, अनन्त समय बीत गया और अनन्त समय बीत जायेगा। काल एक ऐसा तत्व है जो हमें मुफ्त मिलता है। काल का एक अर्थ है- मृत्यु। मृत्यु में भी पक्षपात नहीं चलता तो काल में भी पक्षपात नहीं चलता। चाहे बड़े से बड़ा आदमी हो या छोटे से छोटा आदमी हो जन्म लिया है तो मृत्यु अवश्यंभावी है।
निष्पक्षता सीखनी हो तो हम काल से सीखें। सबको बराबर समय मिलता है। वर्तमान समय वर्तना कर रहा है, काल चलता रहता है, बीतता रहता है। कभी रूकता नहीं है, निर्बाध गति से काल चलता रहता है। जैन दर्शन में बारह का एक काल चक्र होता है। घड़ी की तरह ह्रास और विकास चलता है। समय को रोकना हमारे वश की बात नहीं, समय के साथ हम भी आगे बढ़ने का प्रयास करें। समय के साथ में अच्छी दिशा में विकास करते रहें। समय और हमारा चलना साथ-साथ होता रहे। समय का बड़ा महत्व है। कहा गया है - Time is Money, इस धन का उपयोग हम कंजूस आदमी की तरह करें, महत्वपूर्ण कार्य में समय का नियोजन करें। प्रत्येक दिन में 24 घंटे मिलते हैं, उनका सदुपयोग योजनाबद्ध तरीके से करें।
जीवन की अर्द्धशती के बाद रोज सुबह-सुबह एक सामायिक हो जाये। आदमी की दिनचर्या व्यवस्थित हो, समय को प्रमाद युक्त होकर न गंवाएं। गया हुआ समय, और बीती हुई रात लौटकर नहीं आती है। धर्म करने वाले की रात्रि सफल हो जाती है, अधर्म करने वाले की रात्रि असफल रह जाती है। हम स्थान और समय का बढ़िया उपयोग करें।