पुण्य भौतिक तो क्षयोपशम होता है आध्यात्मिक भाग्य : आचार्यश्री महाश्रमण
निस्पृह साधक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान कराते हुए फरमाया कि साधु जीवन प्राप्त होना भाग्य की बात होती है। एक पुण्य होता है, दूसरा क्षयोपशम होता है। पुण्य से भी भी बहुत मिल जाता है और क्षयोपशम से कुछ प्राप्त हो जाता है। पुण्य और क्षयोपशम दोनों भाग्य है। पुण्य भौतिक भाग्य है, क्षयोपशम आध्यात्मिक भाग्य होता है। पुण्य से जो मिलता है, वह त्याज्य होता है, क्षयोपशम से प्राप्त होता है, मोक्षप्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ने-बढ़ाने में योगभूत बन सकता है। पुण्य से चक्रवर्ती पद मिल जाये, परन्तु अध्यात्म की साधना का रसिक व्यक्ति पुण्य की क्यों आकांक्षा न करे। भौतिक जगत में सबसे बड़ा पद चक्रवर्ती का होता है तो आध्यात्मिक जगत में सबसे बड़ा पद तीर्थंकर का होता है। दुनिया का बड़ा भाग्य है कि कभी भी यह दुनिया तीर्थंकरों के विरह से युक्त नहीं होती है। 20 तीर्थंकर तो कम से कम विद्यमान रहते ही हैं।
आचार्य का स्थान है वो एक तरह से क्षयोपशम से जुड़ा हुआ है, साथ में पुण्य का योग भी आचार्य के साथ जुड़ा हो सकता है। हमें क्षयोपशम की इच्छा करनी चाहिए, पुण्य की आकांक्षा से सामान्यतया बचना चाहिए। पुण्य की आकांक्षा करने से पाप कर्म का बन्ध हो सकता है। हम संवर और निर्जरा का प्रयास करें। इनकी कामना करनी चाहिए, ये दोनों उपादेय हैं। पुण्य को हेय माना गया है। जब तक पुण्यकर्म बंधे रहेंगे तब तक मोक्ष की प्राप्ति भी नहीं हो सकेगी। पुण्य भी एक बन्धन है।
कुछ क्षयोपशम तो हर जीव में होता है। न्यूनतम क्षयोपशम जीवन में न हो तो जीव अजीवता को प्राप्त हो जाये। क्षयोपशम बढ़ जाये, अनंतानुबंधी का क्षयोपशम से सम्यक्त्व की प्राप्ति, अप्रत्याख्यानी से श्रावकत्व की प्राप्ति, प्रत्याख्यानी से साधना की प्राप्ति होती है। अनन्तकाल की यह जीव की यात्रा है। अनन्त जन्मों में मानव जीवन मिलना बहुत अच्छी बात है। मानव जीवन मिलने के बाद साधुत्व प्राप्त हो जाये तो बहुत बड़ी चीज प्राप्त हो जाती है। साधुत्व तो चिंतामणि रत्न है। साधुता का हीरा सुरक्षित रहे। क्षयोपशम का हीरा आगे विकसित हो। जीवन में कई परिस्थितयां आ सकती हैं। अवस्था और बाह्य आकर्षण आ सकता है, मन का भाव कमजोर पड़ जाये, पर किसी भी स्थिति में ये साधुपणा न छूटे, धर्मसंघ - संन्यासरूपी संघ ना छूटे।
आज स्थानकवासी आम्नाय से मुनि द्वय पधारे हैं, साध्वीजी भी बैठी हैं। आप पधारे ये विशेष बात है, श्रमण संघ से हमारा संपर्क रहा है। मैत्री भाव, सद्भावना का भाव बना रहे, अच्छी साधना चलती रहे। गृहस्थों में शांति, समता भाव का विकास होता रहे। श्रमण संघीय मुनि पदम ऋषि जी एवं साध्वी दर्शनाजी ने पूज्यवर की अभ्यर्थना में अपनी भावना अभिव्यक्त की। पूज्यवर की अभिवन्दना में अभय बोहरा, दीपक मोदी, श्रीपाल मरलेचा, अभय सेठिया, डॉ. नंदकिशोर उमले, डॉ. नितिन खंडेलवाल, विनीत साहनी, कमल किशोर मालपानी, माणकचंद कासलीवाल, डॉ. धर्मचंद गादिया आदि ने अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी किया।