वक्ता की साधना और अनुभव युक्त वाणी बन सकती है कल्याणी: आचार्यश्री महाश्रमण
जिनशासन प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल पावन पाथेय प्रदान कराते हुए फरमाया कि आदमी सुनता है। श्रवण शक्ति सक्षम होती है, आवाज आती है, कान का उपयोग होता है, तो आदमी सुन लेता है। सुनने से ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है। शब्द पुद्गल हैं, पर वे अर्थ के संवाहक होते हैं। शब्द और अर्थ का श्रोता-वक्ता को ज्ञान होता है तो अनेक जानकारियां प्राप्त हो सकती हैं। सुनकर अच्छी बातों को जीवन में उतारने वाले कई लोग मिल सकते हैं। सुनने से श्रोता का कल्याण हो सकता है। वक्ता यदि निर्जरा की भावना से यतना पूर्वक बोलता है तो उसको तो लाभ मिल ही जाता है। वक्ता-श्रोता का सम्बन्ध होता है। वक्ता की साधना और अनुभव की वाणी निकलती है और वह श्रोता की अतिथि बनती है। श्रोता उस पर चिन्तन-मनन करता है, तो वह वाणी कल्याणी बन सकती है।
हजारों-लाखों का उपकारी एक वक्ता हो सकता है, जिसकी वाणी से कितनों का जीवन पवित्र बन सकता है, श्रोताओं की दिशा बदल सकती है। सुनना, मनन करना और अच्छी बात को जीवन में उतार लेना ये तीन बातें हो सकती है। सुनकर आदमी कल्याण की बात को जान लेता है तो सुनकर आदमी पाप की बात को भी जान लेता है। जानने के बाद जो श्रेय है, उसका जीवन में समाचरण करना चाहिए।
वक्ता की वाणी और श्रोता का कान ज्ञान का अच्छा माध्यम बनता है। सुनते-सुनते कितनों के मन में वैराग्य के भाव आ सकते हैं। वे माता-पिता भी धन्य होते हैं जो अपनी सन्तानों को दीक्षा की अनुमति दे देते हैं। कई-कई माता-पिता तो अपनी जितनी संतानें होती है उन सबको संयम के पथ पर आगे बढ़ा देते हैं। लोणार के सन्दर्भ में पूज्यश्री ने फरमाया– आज महाराष्ट्र यात्रा में लोणार आये हैं। जीवन में पहली बार इस क्षेत्र में आये हैं। एक क्षेत्र से चार दीक्षाएं एक साथ हुई थी और आज चारों यहां विद्यमान हैं। एक विरल सी बात है। साधना, ज्ञान और सेवा का विकास होता रहे।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने कहा कि जहां तेरापंथ का ये श्रीराम पहुंचता है वहां एक नये वातावरण का निर्माण हो जाता है। कितने जैन-अजैन लोग आचार्यप्रवर से प्रेरणा प्राप्त करने यहां उपस्थित हुए हैं। आचार्य वर लोगों को दिशाबोध देते हैं कि उनका जीवन उन्नत बने। इंसान एक अच्छा इंसान बने यही इनकी यात्रा का लक्ष्य है।
संसारपक्ष में लोणार से संबंधित मुनि आलोककुमारजी, मुनि पुलकितकुमारजी, साध्वी उज्जवलप्रभाजी एवं साध्वी अनुप्रेक्षाश्रीजी ने अपने अंतर उद्गार व्यक्त किये। आराध्य के स्वागत में तेरापंथ सभा अध्यक्ष अनिल चोरड़िया, तेयुप अध्यक्ष दीपक कोचर, महिला मंडल अध्यक्षा अनीता चोरड़िया, राजस्थानी समाज से भीकमचंद रैदासनी, मूर्तिपूजक समाज से संतोष संचेती, मनोज गोगड़, सुगनचंद कोटेचा, प्रेरणा जोगड़ ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मंडल, कन्या मंडल, चैतन्य भक्ति मंडल, लोणार की बहन बेटियों एवं जंवाई ने पृथक-पृथक गीत का संगान कर अपनी प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।