आर्ष वाणी के स्वाध्याय और अनुप्रेक्षा से प्राप्त हो सकता है पथ दर्शन: आचार्यश्री महाश्रमण
जिन शासन के संवाहक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अमृत वर्षा कराते हुए फरमाया कि प्राचीन धर्म शास्त्रों में अच्छी-अच्छी शिक्षाएं प्राप्त होती हैं। आर्ष वाणी, ऋषियों की वाणी, आगमों की वाणी के स्वाध्याय और अनुप्रेक्षा करने से एक संबोध प्राप्त हो सकता है, पथ दर्शन प्राप्त हो सकता है। महापुरुषों ने साधना करके जो प्राप्त किया है, फिर दूसरों को बताया है, उन वाणियों का स्वाध्याय करने से कुछ भीतर में जागृति हो सकती है। शास्त्रों में कहा गया है कि बिना पूछे मत बोलो। आवश्यक बात या कोई पूछे तो बताना भी चाहिए। वाणी का संयम रहे, झूठ नहीं बोलना चाहिए, झूठा आरोप किसी पर नहीं लगाना चाहिए। सच्चा आरोप भी अवसर देखकर लगाना चाहिये। वाणी का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। गुस्सा आना एक प्रकार से हमारी कमजोरी है। गुस्सा आ जाये तो उसे अस्तित्वहीन करने का प्रयास करें। गुस्सा जुबान पर न आने दें। अच्छी शिक्षाओं को जीवन में उतारने का प्रयास करें तो जीवन सफल हो सकता है।
विद्या संस्थानों में बच्चों को ज्ञान के साथ अच्छे संस्कार दिए जाएं तो एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण हो सकता है। बच्चों का सद्गुणात्मक विकास हो। गुरु तो ज्ञान देने वाले, अंधकार को दूर करने वाले होते हैं। गुस्सा और आलस्य मनुष्य के शत्रु हैं, इनसे बचने का प्रयत्न करें। प्रिय और अप्रिय स्थिति को धारण करने का प्रयास करें। हम गंभीरता, धीरता धारण करें और ग्राहक बुद्धि से ज्ञान ग्रहण करने का प्रयास करें। पूज्यप्रवर के स्वागत में विद्यालय परिवार की ओर से शिक्षक गजानंद शिंदे ने अपने विचार प्रकट किए। पूज्यवर की सन्निधि में 'शासनश्री' मुनि हर्षलालजी (लाछुड़ा) एवं 'शासनश्री' साध्वी चांदकुमारीजी (रतननगर) की स्मृति सभा आयोजित की गई। आचार्यप्रवर ने दोनों चारित्रात्माओं का संक्षिप्त जीवन परिचय प्रदान कर धर्मसंघ के साथ चार लोगस्स का ध्यान करवाया। स्मृति सभा में मुख्य मुनि महावीरकुमारजी, साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी, मुनि अजितकुमारजी, मुनि दिनेशकुमारजी, मुनि आलोककुमारजी, मुनि योगेशकुमारजी, मुनि वर्धमानकुमारजी एवं मुनि सिद्धकुमारजी ने अपनी भावांजलि व्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।