आचार्यश्री महाश्रमण जी के दीक्षा कल्याण वर्ष की सम्पन्नता पर िवविध आयोजन

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आचार्यश्री महाश्रमण जी के दीक्षा कल्याण वर्ष की सम्पन्नता पर िवविध आयोजन

साध्वी अणिमाश्रीजी एवं श्रमणसंघीय प्रवर्तक राजेन्द्र मुनिजी के सान्निध्य में दिल्ली सभा एवं उत्तर-मध्य सभा के तत्त्वावधान में अग्रवाल धर्मशाला में पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमणजी का दीक्षा कल्याण महोत्सव का भव्य कार्यक्रम समायोजित हुआ। राजेन्द्र मुनिजी ने अपने वक्तव्य में कहा - आज महान जैनाचार्य आचार्य श्री महाश्रमणजी का दीक्षा दिवस है। संयम पर्याय के पचास बसंत पूरे हो चुके हैं। पूरे धर्मसंघ में हर्षोल्लास है। संयम सुख का राजमार्ग है, संयम आनंद का उपवन है। संयमी आत्मा ही जीवन में शांति के शतदल खिला सकती है। महान संयम की आराधना करने वाले पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी का अभिनंदन। मुझे भी उनके दर्शन का सौभाग्य मिला है। ऐसे महायशस्वी, महातपस्वी आचार्य महाश्रमणजी दुनिया को संयम का आलोक बांटते रहें।
साध्वी अणिमाश्रीजी ने श्रद्धा अर्ध्य समर्पित करते हुए कहा अनुत्तर संयम के अनुत्तर महासाधक आचार्य महाश्रमणजी के दीक्षा कल्याण उत्सव पर हम उनकी अभ्यर्थना कर रहे हैं। दस आचार्यों की अतिशय पुण्याई का भोग करते हुए वे अपनी तेजस्वी साधना के द्वारा अपनी पुण्याई को शतगुणित कर रहे हैं। आचार्य महाश्रमणजी आत्मद्रष्टा, युगनायक, युगपुरुष हैं। उन्होंने आगम रूपी महासागर से ज्ञान रूपी मोतियों को बटोरकर न केवल अपने जीवन को आभामंडित किया है बल्कि धर्मसंघ को भी आभामंडित कर रहे हैं। संयम की अर्धशती के सुहाने सफर की संपन्नता पर हम यही मंगलकामना करते हैं कि सम्पूर्ण धर्मसंघ आपके संयम की शताब्दी मनाएं। साध्वीश्री ने कहा- आज हमने इस दीक्षा-कल्याण उत्सव पर लगभग सात सौ एकासन एवं इकावन तेले तथा एक चोला करवाकर पूज्यप्रवर की तप के द्वारा अभिवंदना की है। दिल्ली श्रावक समाज ने तपांजलि समर्पित की है। पूज्यपवर के दीक्षा कल्याण महोत्सव वर्ष पर श्रावक समाज ने एक वर्ष में 'ऊँ श्री महाश्रमण गुरवे नम:' का तेरह करोड़ का जप कर जपांजलि समर्पित की है।
डॉ. साध्वी सुधाप्रभाजी ने मंच संचालन करते हुए कहा - धरती पर जब श्रमणत्व को प्रकट होने की इच्छा हुई तो वो महाश्रमण के रूप में प्रकट हुआ। आचार्य महाश्रमण सिर्फ श्रमण नहीं अपनी साधना के तेज से महाश्रमण बने हैं। साध्वी मैत्रीप्रभाजी ने अपने वक्तव्य में कहा - आचार्य महाश्रमणजी ज्ञान के दिवाकर, शांति के सुधाकर, जय-विजयी गुणाकर हैं, इस पंचम कलिकाल में महावीर सम तीर्थंकर हैं। साध्वी समत्वयशाजी ने स्वरचित गीत के द्वारा अभ्यर्थना की।