करुणा वत्सलता के महामेघ

करुणा वत्सलता के महामेघ

करुणा वत्सलता के महामेघ, अहिंसा मैत्री के सूत्रधार।
जनहित संपादित करने, खुले सदा तुम्हारे द्वार।।
आत्मदर्शी आत्मज्ञ बने तुम, स्थिरयोगी स्थितप्रज्ञ बने तुम
शास्त्रों के मर्मज्ञ बने तुम, तरणि सम तेज तपस्वी हो
क्षेमंकर शुभ वर्चस्वी हो, सुरगुरु सम महामनस्वी हो
श्रुतधर तुम परम यशस्वी हो, गणमाली कीर्ति निराली
फैली सात समन्दर पार।।
लाखों का भाग्य सवाया, लाखों का शौर्य जगाया।
लाखों को पार लगाया, लाखों पर तेरा साया।।
हिमकर जैसे शीतल हो , मेरुसम अविचल हो,
चंदा सम उज्जवल हो, स्वच्छ गगन सम निर्मल हो।
गूंजे लाखों कंठो में, महाश्रमण की जय जयकार।।
चिन्मय चेतन का विस्तार करो, महोदधि से निस्तार करो।
भव, भ्रमण से उद्धार करो, भक्तों की नैया, पार करो।।
सागर सम गंभीर हो, धरणी सम धीर हो।
सिंह केसरी से वीर हो, युग की तुम तकदीर हो।।
तेज पुंज प्रभु महाश्रमण, जिनवर के अवतार
जनहित संपादित करने, खुले सदा तुम्हारे द्वार।।