गुरु बन कौन सहारा
किस्मत से पाया भैक्षवगण महाश्रमण गणनाथ।
गुरु ही तारणहारा, गुरु बन कौन सहारा।।
दीक्षा प्रदाता तुम ही, शिक्षा प्रदाता,
जीवन निर्माता गुरु ही, भाग्य विधाता।
संयम पर्यव बनें उज्जवलतम दिखलाओ वह पाथ।।
अभिप्सित देते सबको, तुमसा न कोई शूर,
इस युग के वीर तुम ही, कर्मों को करने चूर।
भूमंडल पर घूम-घूमकर विजयी बने विक्रान्त।।
जीवन का हर पल हर क्षण तुम पर ही अर्पण,
चाहे जो इंगित दे दो करेंगे आराधन।
गुरु ही करते शिष्य की चिंता हम निश्चिंत दिन रात।।
गुरु दृष्टि सारे जहां की खुशियां दिराती,
गुरु की कृपा कंकर को शंकर बनाती।
गुरुप्पसायभिमुहोरमेरज्जा कैसे बनें हम तात।।
लय - स्वर्ग से सुन्दर