जन-जन के हो राम

जन-जन के हो राम

नेमासुत अखिलेश विश्व के, तेरापंथ को तुम पर नाज,
करूणा सागर की करूणा से, तृप्त हुआ है सकल समाज।।
धन्य हुई मां नेमां जिसके, कुल पर कलश चढ़ाया है,
पुलकित प्रमुदित झूमरमलजी, सुत ऐसा घर आया है।
संस्कारों की मिली संपदा, मोहन का भाग्य सवाया है,
दूगड़ परिकर का मन हर्षित, सावन धन लहराया है।
होनहार बालक को पाकर, मंत्री मुनि ने समझा राज।।
शिक्षित दीक्षित और परिक्षित, उदित मुदित को किया समर्पित,
खिला-खिला मन मुनि सुमेर का, अन्त: करण हुआ अल्हादित।
संघ संपदा सौंप गुरु को, रोम-रोम मुनिवर का पुलकित,
शुभ लक्षण बालक के देखकर, प्रभुवर का मानस आकर्षित।
भावी के हस्ताक्षर कर, निश्चिन्त बने तुलसी गुरुराज।।
भव्य भाल पर तिलक संघ का, महाप्रज्ञ के अन्तर्यामी,
संयम निष्ठा देख अनुत्तर, मानो आ गये भिक्षु स्वामी।
जन-जन के बस राम तुम्हीं हो, सचमुच हो तुम तुलसी स्वामी,
वरदायी यात्रा प्रभुवर की, अखिल विश्व में हो गई नामी।
दीक्षोत्सव के पल ये उजले, वर्धापित करते गणीराज।।