युगनायक युगपुरुष तुम्हें वंदन है
उज्जवल निर्मल आभामंडल, गंगाजल सा जीवन,
पौरुष के परम पुजारी, आराध्य देव को करूं वंदन।
आगम ज्ञाता प्रखर प्रवक्ता, चंदन सा शीतल जीवन,
शीश झुकाऊं चरणों में, करूं शत-शत अभिनंदन।
भिक्षु के एकादशम पट्टधर, अद्भुत रूप सुदर्शन,
तुलसी, महाप्रज्ञ की कृति का, करती हूं अभिनंदन।
शुद्धाचार विचार तुम्हारा, मैनेजमेंट से संघ संवारा,
नभ धरती पर गूंज रहा, महाश्रमण का जयकारा।
तुम हो नैया खेवणहार, तुम हो शासन के श्रृंगार,
अनुपमेय रूप है ऐसा, जैसे हो कोई देवकुमार।
अनुकम्पा से अनुप्राणित, करते धरती का कण कण,
गुरु कृपा से सुख का दरिया, बहता रहता क्षण क्षण।
अनुत्तर है श्रद्धा, समर्पण, अनुत्तर है साधना,
मंगल भावों से करती हूं, आराध्य की आराधना।
दीक्षा कल्याण महोत्सव, मंगलमय बन जाए,
श्रद्धा के अक्षत चन्दन से, प्रवीणा थाल सजाए।