सागर सी गहराई
तुम्हारे गहन चिंतन में है सागर की सी गहराई,
तुम्हारी ऊंची सोच में है मेरु की सी ऊंचाई।
अडिग हौसलों में है चट्टानों की सी दृढ़ताई,
निश्चलता मन की ऐसी मानो आईने में परछाई।
कोमलता देख मन की तेरे कली-कली भी शरमाई,
करुणा भाव ऐसा कि पीड़ा चेहरे ने दर्शाई।
आभा वलय में तेरे चुंबक सी मैं खींची आई,
मिला जिसे सामीप्य तेरा, धन्यता उसने पाई।
रहा सौभाग्य मेरा कि कुछ पल आपकी सन्निधि पाई,
मिले ऐसे मोड़ पर मुझे, आपने जो राह दिखाई,
उसी ने मेरे जीवन की दिशाएं सारी उजलाई।