रोम-रोम में है अद्भुत स्पंदन
आचार्यश्री महाश्रमण जी के 50वें दीक्षा कल्याण वर्ष,
63वें जन्म दिवस, एवं 15वें पदाभिषेक दिवस पर करते हैं सविनय वंदन।
रोम-राम है पुलकित हमारा, रोम-रोम में है अद्भुत स्पंदन ।।
आज संघ गौरवान्वित है ऐसा संघपति पाकर।
लगता है गुरु तुलसी ही विराज रहे हैं आज यहाँ पर आकर।।
आप श्री के कुशल नेतृत्व में संघ निरंतर शिखर चढ़ रहा।
नए-नए आयामों से गण का भंडार है भर रहा।।
समता की साकार प्रतिमूर्ति, धैर्य सहिष्णु, संयत मन।
स्मित मुस्कान, मृदु मितभाषी, सौम्य सूरत सदा प्रसन्न।।
आप श्री ने युगीन समस्याओं का दिया है युगानुकूल समाधान।
युगानुकूल ही किए त्वरित परिवर्तन, यथा जरूरत, यथा स्थान।।