वो कौन?

वो कौन?

कालजयी व्यक्तित्व तुम्हारा शब्दों में कैसे बतलाऊं,
श्रद्धा भक्ति के भावों से कुछ अर्पित कर पाऊं।
जिसका हर चरण विश्व कल्याणी भावना से ओत-प्रोत,
जिसका हर वाक्य माधुर्य रस बरसाता निर्झर चहुं ओर।
जिसका हर व्यवहार अनेकांत का उदाहरण,
जिसके न मठ न मंदिर न मकान न संस्थान,
न प्रतिष्ठा, न कोठि, न कुटिया, न प्लेटफार्म,
न कहीं तीर्थ धाम और न कही मुकाम।
जिसको न चाहिये वोट, न चाहिये नोट,
जो लेता सबकी खोट।
विश्व को दिया जिसने अनमोल अवदान,
अहिंसा यात्रा, प्रेक्षाध्यान अणुव्रत जीवन विज्ञान।
अपार भीड़ में भी जो बिल्कुल अकेला,
और अकेले में भी जिसके चारों तरफ रहता अनोखा मेला।
वो कौन? वो न चक्रवर्ती, न सम्राट, विचारों से व्योमवत्,
विराट, अलग योगी, अनुयोग धाम, आगमवाणी का अनुसंधाता,
अध्यात्म जगत का सशक्त स्वर, वो है कालजयी महर्षि,
तेरापंथ धर्म संघ के 11वें आचार्य युग प्रधान,
गुरुदेव आचार्यश्री महाश्रमणजी।