काम सिद्ध कर पाए
धन्य-धन्य मुनि हर्षलाल जी, काम सिद्ध कर पाए।
श्रद्धा भक्ति भाव से मुनिवर, तव गुण गरिमा गाएं।
पाएं आत्मानंद विशेष, मेटें कर्मों के संक्लेश।।
लाछुड़ा वासी सन्यासी बनने को घर छोड़ा,
छोटी सी उमर में मोह माया से नाता तोड़ा।
जोड़ा मन संयम जीवन से-2, वीर वृत्ति अपनाए।।
मौन ध्यान स्वाध्याय और जप का क्रम था जीवन में,
हर्ष नाम था हर्षोल्लास भरा था तन में मन में।
ऐसे साधक आराधक बन-2, ऊर्ध्व गति में जाए।।
सूक्ष्म लिपि में लिखे आपने कई ग्रंथ अति सुंदर,
कलाकार की वे कलनाएं बन गई आज धरोहर।
दसवेआलियं भगवद् गीता-2, क्या-क्या हम बतलाएं।।
चौथे आरे के संतों सी सहज सरलता समता,
श्रमशील जीवन जीया, नहीं देखी कभी विषमता।
मुनि चैतन्य 'अमन' जीवन में-2, वैसी राह दिखाएं।।
'शासनश्री' के श्री चरणों में, श्रद्धा फूल चढ़ाएं।।
लय – मांय न मांय