दूसरों को कष्ट नहीं आध्यात्मिक हित पहुंचाने का करें प्रयास: आचार्यश्री महाश्रमण
तेरापंथ के महामहिम धर्म दिवाकर आचार्यश्री महाश्रमणजी का भव्य जुलूस के साथ बुलढ़ाणा पदार्पण हुआ। परम पावन ने अमृत देशना प्रदान कराते हुए फरमाया कि आदमी ही नहीं संसार के सभी प्राणी जीवन जीते हैं। जीवन जीना सामान्य बात है। आयुष्य कर्म के सहयोग से जीवन जिया जा रहा है।
धार्मिक तरीके से जीवन जीना विशेष बात हो जाती है। मानव जीवन को शास्त्र में दुर्लभ बताया गया है, जो हमें वर्तमान में उपलब्ध है। मानव जीवन में जो उत्कृष्ट साधना की जा सकती है वह अन्य जीवन में नहीं की जा सकती। धर्म की कला सीखे सकें तो बड़ी बात है। कहा गया है कि बहत्तर कला में पंड़ित बनने पर भी वे अपंडित रह जाते हैं, यदि वे सर्वक्षेष्ठ धर्म कला को नहीं जानते।
सभी कलाएं हैं विकलाएं, पंडित सभी अपंडित हैं।
नहीं जानते कैसे जीना, केवल महिमा मंडित है।।
प्रश्न है कि आदमी धर्म की कला कैसे सीखें? जीवन विज्ञान से विद्यार्थी जीने की कला सीख सकते है। श्वास कैसे लेना, भोजन कैसे करना आदि अनेक कलाएं हो सकती है। जीवन में ईमानदारी रखने का प्रयास हो, झूठ और चोरी से विरत रहें। गृहस्थ जीवन में भी यथासंभव साधना का करने का प्रयास किया जाए।
'सांच बरोबर तप नहीं, झूठ बरोबर पाप।
जाके हिरदै सांच है, ता हिरदै प्रभु आप।।'
सच्चाई में कठिनाईयां आ सकती है, पर अंतिम विजय सच्चाई की होती है।
अहिंसा का भी यथा संभव प्रयास करें। दूसरों को पीड़ा नहीं पहुंचाएं, हो सके तो आध्यात्मिक हित करने का प्रयास करें। अहिंसा परम धर्म है। षट् जीव निकाय तो संसार में अनंत-अनंत है। सब प्राणियों के साथ मैत्री की भावना रहे, सब के प्रति सद्भावना रहे। दु:ख हिंसा, झूठ, चोरी से पैदा होते हैं। जीवन में संयम रहे, धर्म की साधना में समय लगाएं तो यह जीवन भी और परलोक भी अच्छा रह सकता है। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि जिन बच्चों का सम्पर्क अच्छे लोगों से होता है उनमें अच्छे संस्कार आ सकते हैं। व्यक्ति को जैसा वातावरण मिलता है, व्यक्ति वैसा हो जाता है। ज्ञानी पुरुषों की संगत से हमारी ज्ञान चेतना जागृत होती है। आचार्य प्रवर के प्रवचन से ज्ञान की रश्मियां उपलब्ध होती है। अच्छा जीवन जीने के लिए महापुरुषों की सन्निधि में रहना अपेक्षित है।
पूज्यप्रवर के स्वागत में एडिशनल कलेक्टर निर्भय जैन, बुलढ़ाणा अर्बन प्रमुख राधेश्याम चांडक, निशा सांखला, महाराष्ट्र केमिस्ट एसोसिएशन के सचिव अनिल नावदार, पुलिस महानिर्देशक सुनील कडासले, श्री संघ बुलढ़ाणा के राजेश देसरला, डॉ. उमेश सांखला एवं प्रकाशचंद चोरड़िया ने अपने उद्गार व्यक्त किए। शिवानी एवं खुशी सांखला, सांखला परिवार, स्वर साधना मंडल, स्वर्ण गीत मंडल ने पृथक-पृथक गीत का संगान कर अपनी भावना व्यक्त की।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।