गुरु मुख दर्शन है भाव विशुद्धि का निमित्त : आचार्यश्री महाश्रमण
अध्यात्म जगत के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग 14 किमी का विहार कर एकलारा के विवेकानन्द विद्यालय में पधारे। मंगल देशना प्रदान कराते हुए ने फरमाया कि चौरासी लाख जीव योनियां बताई गई हैं, उनमें जो मनुष्य जन्म है, यह दुर्लभ है। लम्बे काल तक भी कई प्राणियों को यह उपलब्ध नहीं होता है। कर्मों के विपाक से यह दुर्लभ मनुष्य जन्म हमें अभी उपलब्ध है। यह समय जो हमें प्राप्त है, इसे हमें प्रमाद में खोना नहीं चाहिए। मू्र्छा में सोये नहीं रहना चाहिए। इस मनुष्य जन्म को सफल, सुफल करने के लिए हमें भगवद् भक्ति करनी चाहिए। जिनेश्वर देव का नाम स्मरण बहुत महत्वपूर्ण है। नमस्कार महामंत्र का जप-स्मरण करें। अच्छे शब्द मुख पर आने से मन में अच्छे भाव भी उभर सकते हैं। भक्ति से मनुष्य जन्म सफल हो सकता है। धर्माचार्य - ज्ञान देने वाले गुरु की पर्युपासना करें। गुरु-मुख दर्शन भी भाव शुद्धि का निमित्त बन सकता है।
तीसरी बात है - प्राणियों के प्रति अनुकम्पा-अहिंसा की भावना। राग-द्वेष से किसी की हिंसा न करें, हो सके तो किसी को चित्त समाधि पहुंचाए, धर्म का प्रतिबोध दें। परोपकार करना पुण्य निष्पन्न करने वाला है। दूसरों को पीड़ा पहुंचाना पाप को पैदा करने वाला है। चौथी बात- सुपात्र दान देना। शुद्ध साधु को दान देना। भावना यह रहे कि- मैं भी भूखा ना रहूं, साधु न भूखा जाय। दान देने से कई लाभ हो सकते हैं, वितरण निष्फल नहीं जाता। साधु को तो दान देना धर्म की बात बताया गया है। पांचवीं बात- गुणों के प्रति अनुराग। गुणों के प्रति प्रमोद भावना रखो। आगम-ग्रंथों की वाणी गुरुओं से सुनो। सुनते-सुनते आदमी में विरक्ति का भाव पैदा हो सकता है, सद्गुणों का विकास हो सकता है। अच्छा देखें, अच्छा सुनें, अच्छा बोलें, अच्छा सोचें, अच्छा करें। भगवद भक्ति, गुरु पर्युपासना, सत्वानुकम्पा, सुपात्र दान, गुणानुराग - ये पांच कार्य करने से हमारा मानव जीवन सफल-सुफल हो सकता है।
इंसान बनना बहुत बड़ी बात है। मोक्ष जाने के लिए देवों को भी मानव जीवन लेना पड़ता है। समय बीत रहा है, हम प्रमाद से बचें। अगला जन्म दुर्गति में ना चला जाए। धर्म, सदाचार, सद् विचार के साथ जीवन जिएं। बच्चों को भी अच्छा मार्ग दर्शन मिलता रहे जिससे वे भी अच्छा जीवन जी सकें। जीवन में अहिंसा, नैतिकता, नशामुक्ति और संयम रहे। विद्यार्थी जीवन में ज्ञान और अच्छे संस्कारों का अर्जन तथा बुरी चीजों विसर्जन हो। विद्यालय में विवेक और आनन्द का विकास होता रहे। सन्यास मिलना तो बड़े भाग्य की बात है। हम मानव जीवन को सफल, सुफल बनाने का प्रयास करें।