अक्षय तृतीया दिवस पर आयोजित िवभिन्न कार्यक्रम
अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमणजी की सुशिष्या समणी मधुरप्रज्ञाजी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा- भारतीय संस्कृति उत्सव प्रधान संस्कृति है। इस संस्कृति में अनेक उत्सव आते हैं। कुछ उत्सव खाने-पीने और सजने के होते हैं तो कुछ न खाकर मनाने के उत्सव होते हैं। जैन आगमों में अनेक प्रकार के तप का वर्णन है- भद्रोतप, महाभद्रोतप, कंठी तप, चंदनबाला तप आदि। आज का तप भगवान ऋषभ के साथ जुड़ा हुआ है। वैसे भी भारतीय संस्कृति में अक्षय तृतीया का दिन बहुत शुभ माना गया है। किसी भी शुभ कार्य करने के लिए आज के दिन का मुहूर्त निकलवाना नहीं पड़ता। आज का दिन स्वतः शुभ है। भगवान ऋषभ ने असि-मसि और कृषि के माध्यम से सामाजिक, राजनैतिक कार्य के क्षेत्रों को बढ़ाया। जब उन्हें लगा कि अब मुझे धर्म का प्रकाश फैलाना है तब वे दीक्षित हो विचरण करने लगे। आज के दिन भगवान ऋषभ ने लगभग 13 महीनों की तपस्या का पारणा प्रपौत्र श्रेयांस के हाथों से किया। आज भी लोग भगवान की स्मृति को तरोताजा बनाए रखने के लिए एक साल तक वर्षीतप करते हैं और आज के दिन पारणा करते हैं। अमराव बाई बोरड़ एवं मंजु बाई सेठिया ने भी वर्षीतप कर भगवान के प्रति श्रद्धा समर्पित की है। समणी जी ने आगे फरमाते हुए कहा- तप शरीर को सुन्दर बनाने के लिए नहीं अपितु कार्मण शरीर की शुद्धि के लिए किया जाता है। तप से हमारी आत्मा निर्मल और पवित्र होती चली जाती है। बोरड़, बैद एवं बोथरा परिवार के सदस्यों, ज्ञानशाला एवं महिला मंडल द्वारा वक्तव्य, गीतिका एवं नाटक के माध्यम से प्रस्तुति दी गई। सुगंधा बोरड़ ने कार्यक्रम का संचालन किया।