विषयों से विमुखता और श्रुताराधना से रहे सम्मुखता : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

विषयों से विमुखता और श्रुताराधना से रहे सम्मुखता : आचार्यश्री महाश्रमण

धर्म दिवाकर आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल देशना प्रदान कराते हुए फरमाया कि आदमी के जीवन में अच्छाईयां भी हो सकती है तो बुराईयां भी मिल सकती हैं। आदमी गुणों से अच्छा होता है और अवगुणों से असाधु होता है। एक ही आदमी के जीवन को हम देखें तो हो सकता है उस आदमी में कई विशेषताएं हमें नजर आ जाएं और हो सकता है उसी आदमी में कई कमियां भी प्राप्त हो जाएं। आदमी की पहचान अच्छे कपड़ों से नहीं, अच्छे गुणों से होती है। व्यक्ति के आते समय तो कपड़ों से सम्मान हो जाता है परंतु जाते समय व्यक्तित्व का सम्मान होता है। प्रथम दृष्टया अलग अनुभव होता है, बाद में, साथ में रहने से अलग अनुभव हो सकता है। हमें कपड़ों-गहनों वाले व्यक्तित्व तक सीमित नहीं रहना चाहिए। हमें वह व्यक्तित्व-कर्तृत्व निर्मित करना चाहिए जो लम्बे समय की साधना से निष्पन्न होता है।
आदमी का विचार, ज्ञान और आचरण कैसा है, ये जीवन के महत्वपूर्ण विषय हो सकते हैं। सामान्य वेशभुषा में कोई महान व्यक्तित्व विराजमान हो सकता है। आचार्यप्रवर ने आगे फ़रमाया- बताया गया कि आज ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी हमारे मुख्यमुनि का जन्मदिन भी है। युवावस्था है, युवावस्था में आदमी अच्छा काम करे। ये छोटे से गांव फलसूंड से हैं, जो हमारे धर्म संघ में मुख्यमुनि के रूप में आसीन हैं। छोटे से गांव या साधारण घर में जन्मा व्यक्ति भी उन्नति कर सकता है, भाग्य का भी साथ होता है। जन्म कहां हुआ इसका महत्त्व नहीं है, आदमी की आत्मा कैसी है? भाग्य कैसा है? पुरुषार्थ कैसा है? इन तत्वों का बड़ा महत्त्व है। 'श्रेष्ठ श्रुताराधक' की डिग्री मुख्यमुनि ने मुझसे ही प्राप्त की थी, बहुश्रुत परिषद के संयोजक भी बन गये। ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी को श्रुत पंचमी भी कहा जाता है। साधु में श्रुत सम्पदा अच्छी हो। बहुश्रुत होना की एक महिमा होती है। उत्तराध्ययन के 11वें अध्याय में बहुश्रुत की महिमा प्राप्त होती है। श्रुत हमारे जीवन की एक संपत्ति बन सकती है। गृहस्थों में भी डिग्रीधारी श्रावक-श्राविका मिल सकते हैं। श्रुत का विकास होना विशेष बात है। मुख्यमुनि का 36वां वर्ष पूरा हो रहा है, मेरा 63वां वर्ष चल रहा है। विषय विरक्ति के रूप में विमुखता रहे और श्रुत की आराधना के संदर्भ में सम्मुखता रहे। मुख्यमुनि भी खूब विकास करते रहें, सेवा देते रहें। युवावस्था कार्य करने का विशेष समय होता है। सेवा में समय का नियोजन होता रहे, सेवा हमारा धर्म है। बहुश्रुत परिषद् के सात सदस्यों में उम्र में सबसे छोटे मुख्यमुनि हैं और संयोजक के रूप में सबसे बड़े भी हैं। श्रुत का चिंतन मनन होता रहे। प्रतिभा-प्रज्ञा एक प्राण तत्त्व है, थोड़े में भी बहुत कुछ प्राप्त किया जा सकता है। पूज्यप्रवर के स्वागत में डॉ. राजेन्द्र लोढ़ा ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमारजी ने किया।