नश्वर मनुष्य जीवन में करें आत्मशोधन का प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण
शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आर्हत वाणी की वर्षा कराते हुए फरमाया कि दुनिया का हर प्राणी जीवन जीता है। जीवन जीने के लिए कुछ परिश्रम करना पड़ता है। जीवन जीने के लिए इतना खपना पड़ता है, आखिर जीवन जीने का उद्देश्य क्या है? जीवन शाश्वत नहीं है। कभी न कभी इस जीवन का अन्त भी होता है। जीवन अनित्य है, इसका कब अंत हो जाए यह भी पता नहीं लगता। मौत का पहले पता न लगना भी दुनिया की अच्छी व्यवस्था है। पहले पता लग जाए तो आदमी चिंता के कारण मरणासन्न हो जाता है।
जो मौत को याद रखता है, वह गुस्सा नहीं करता, साधना का जीवन जीता है। मौत को याद रखने वाला, परिणाम को देखने वाला पाप कर्म का बंध नहीं करता है। मृत्यु होना निश्चित है, कब होना वह अनिश्चित है। इसलिए जब तक जीवन है, अच्छा जीवन जीएं, शांति से रहें। धर्म का सिद्धान्त है कि आत्मा कभी नहीं मरती। आत्मा शाश्वत है, शरीर नश्वर है। आत्मा और शरीर का संयुक्त रूप जीवन है, अलग-अलग होना मृत्यु है। हमेशा के लिए शरीर से आत्मा का अलग हो जाना मोक्ष है।
अनादि काल से आत्मा है और उस पर कर्मों आवरण है। उन कर्मों का क्षय करने के लिए, निर्जरा करने के लिए, आत्मा को निर्मल बनाने के लिए इस शरीर को धारण करना चाहिए। आत्म शोधन के लिए, संवर और निर्जरा के लिए शरीर धारण करना चाहिए। यह मनुष्य जन्म मिला है, इसमें जितना आत्मा को कर्म मल से शुद्ध कर सकें, प्रयास करना चाहिए। संत बनकर अखंडता से साधु जीवन निभा देना बहुत बड़ी उपलब्धि होती है। बहुत बड़ा सौभाग्य हो तो ये साधुपन मिलता है। गृहस्थ जीवन में रहकर भी आदमी सज्जन बनकर रहें। जीवन में ईमानदारी, अहिंसा और नशामुक्ति रहे। क्रोध मनुष्यों का शत्रु है, एक प्रकार
का नाग है, इससे बचकर रहें। दुनिया का भाग्य है कि दुनिया में साधु भी मिलते हैं। साधुओं से अच्छी वाणी सुनें, जीवन में धार्मिक-आध्यात्मिक स्वाध्याय करें। कर्मों को धोने के लिए जीवन जीना चाहिए, उसके लिए सज्जनता का जीवन जीयें। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने फरमाया कि संसार में सौ सूर्य उग जाए या हजार चन्द्रमा उग जाए पर यदि जीवन में गुरु प्राप्त नहीं हुआ है, तो जीवन में अंधकार है। गुरु ज्ञान का प्रकाश देने वाले होते हैं, अज्ञान को दूर कर ज्ञान का दीप शिष्य के जीवन में उजागर करते हैं। हम गुरु की सन्निधि से ज्ञान चेतना को जागृत करें और भीतर के आनंद को प्राप्त कर सकें।
पूज्यप्रवर के स्वागत में ब्रह्मकुमारी मंगला दीदी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। न्यू इंग्लिश स्कूल नशिराबाद से राजू पांचपांडेसर ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। प्रेक्षा-प्रांजल कुचेरिया, अवनी कुचेरिया, जिनल कुमठ, किरण कुचेरिया, श्री संघ की ओर से नीतिन चौपड़ा ने अपनी श्रद्धासिक्त भावना अभिव्यक्त की। स्थानीय तेरापंथ महिला मंडल ने स्वागत गीत का सुमधुर संगान किया।कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमारजी ने किया।