वास्तविक चिन्तन से रह सकते हैं सुखी : आचार्यश्री महाश्रमण
धर्म-धुरंधर महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी का अपनी धवल सेना के साथ जामनेर पदार्पण हुआ। उपस्थित जनमेदिनी को मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान कराते हुए शांतिदूत पूज्य गुरुदेव ने फरमाया कि आदमी का चित्त अथवा मन चंचल होता है। विभिन्न भाव मन में उभर जाते हैं। कभी आदमी अहिंसा की भावना में होता है, तो कुछ समय बाद उसके मन में हिंसा का विचार भी आ सकता है। कभी आदमी क्षमा-शान्ति की विचार धारा में है, तो कभी उसे गुस्सा भी आ सकता है। कभी सन्तोष के विचार में है, तो कभी लोभ का विचार भी आ सकता है। हमारे भीतर सद्भाव और असद्भाव दोनों हैं, जब मोहनीय कर्म जब उग्र होता है तो गलत भाव उभर जाते हैं मोहनीय कर्म शान्त रहता है तो हमारे भीतर अच्छे विचार उभर सकते हैं। हमें प्रयास यह करना चाहिए कि मेरा मोहनीय कर्म हल्का पड़े, मोहनीय का क्षयोपशम पुष्ट हो, जिससे भाव शुभ रह सकें ताकि मन में शान्ति रहे।
जीवन में अनेक समस्याएं आ सकती है पर हमारे भीतर समता की ऐसी साधना रहे कि प्रतिकूलता की स्थिति होने पर हम शान्ति में रह सके। इसमें चिन्तन की एक अच्छी भूमिका हो सकती है। हमारा चिन्तन सकारात्मक हो, वास्तविक हो। थोड़े अभाव की स्थिति से दु:खी न बनें, जो अनुकूलताएं प्राप्त हैं उनका अच्छा उपयोग करें। हमारा चिंतन प्रशस्त होना चाहिए, मन में ज्यादा तनाव न हो। समस्या में भी समता का भाव रखें। समस्या को समस्या को मानें, उसे देखना सीखें, सुलझाने का उपाय सोचें। समस्या और दु:ख एक नहीं है। समस्या के आने पर भी दुःखी होना जरूरी नहीं है। लाभ-अलाभ, सुख-दु:ख, जीवन-मरण, मान-अपमान, निन्दा-प्रशंसा सब में सम रहने का प्रयास रहे। शास्त्र संदेशों के आधार पर अपने विचारों को उच्च रखें। दूसरों के हाथ का खिलौना नहीं बनें, अपना चिंतन आदमी स्वयं करे। कमियों को कम करने का और अच्छाइयों को ग्रहण करने का प्रयास करे। अच्छी और सच्ची बात किसी भी ग्रन्थ में, पन्थ में या किसी भी सन्त के पास मिले, उसको ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिये। हमारा विचार उदार हो, सबके प्रति सद्भावना, मैत्री-भाव रहे। हमारा चिन्तन वास्तविक हो तो हम सुखी रह सकते हैं और आत्मा का भी भला हो सकता है।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि आचार्यवर महाराष्ट्र में अमृत की वर्षा कर रहे हैं। आचार्यवर ने अपने व्यक्तित्व और कर्तृत्व के द्वारा जनमानस को प्रभावित किया है। आचार्यवर ने प्रलम्ब यात्रायें की है, तभी आपका व्यक्तित्व जन-जन का आकर्षण बना हुआ है। सच्चा सन्त वही होता है जो अकिंचन और निस्पृह होता है। सकल जैन समाज व जैनेत्तर समाज आपका स्वागत करते हैं। आपका पवित्र आभामंडल सबको शान्ति प्रदान करने वाला होता है। पूज्यप्रवर के स्वागत में विहान कोठारी, तेरापंथ महिला मंडल, तेयुप, जामनेर श्री संघ महिला मंडल आदि ने अपनी प्रस्तुति दी। तेरापंथ सभा अध्यक्ष पवन सांखला, श्री संघ की ओर से सचिन चौपड़ा, पाठशाला के बच्चों, लॉर्ड गणेश स्कूल से अभय बोहरा, खान्देश सभा अध्यक्ष नानकराम तनेजा, अनिल सांखला, अभय सांखला, बी.सी. भालावत, बाबूलाल बाफना, ईश्वर बाबू ललवानी, भाग्यश्री रांका आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।