भावों की चिकित्सा करते हैं गुरू

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भावों की चिकित्सा करते हैं गुरू

गुरू फैमिली डॉक्टर की तरह होते हैं। वे हमारे भावों की चिकित्सा करके हमें शुद्ध बनाते हैं, सही राह बताते हैं। गुरु से ही हमें मुक्ति मिलती है। उपरोक्त विचार डीजी वैष्णव कॉलेज, अरुमबाक्कम के नवीन ऑडिटोरियम में आयोजित आचार्य श्री महाश्रमण अभिवन्दना समारोह में साध्वी डॉ. गवेषणाश्रीजी ने व्यक्त किए। आचार्य श्री महाश्रमणजी के 63वें जन्मदिवस, 15वें पदाभिषेक दिवस एवं 51वें दीक्षा दिवस को परिलक्षित करते हुए आयोजित इस कार्यक्रम में अपने गुरु की अभिवन्दना करते हुए साध्वीश्री ने कहा कि आचार्य महाश्रमण एक व्यक्ति ही नहीं अपितु सम्पूर्ण व्यक्तित्व है। आपकी प्रकृति सहज, सरल और शांत है। आपका आभामंडल सभी को आकर्षित करने वाला है। साध्वीश्री ने आपकी गुरु निष्ठा, संघ निष्ठा, वैराग्य निष्ठा को बताते हुए कहा कि वे जहां गुरु की आज्ञा के प्रति पूर्ण समर्पित है, वहीं संघ निष्ठा में आपने आचार्य पद ग्रहण करते ही तेरापंथ के तीर्थ धामों, सेवा केन्द्रों की यात्रा करते हुए वहां प्रवासित साधु-साध्वियों की सार सम्भाल ली और सेवार्थियों का सम्मान बढ़ाया।
साध्वी दक्षप्रभाजी ने 'महाप्रज्ञ के पट्टधर की, यशोगाथा गायें हम' मधुर स्वर से माहौल को संगीतमय बना लिया। मुख्य अतिथि अशोक मुँसड़ा ने कहा कि गुरु की मान कर ही हम परमात्म पद पा सकते हैं। आचार्य महाश्रमण की विशेषता बताते हुए कहा कि वे मोहन से बृज मोहन बन गए। कॉलेज परिसर में ऐसे महान महात्मा के गुणानुवाद कार्यक्रम करने के लिए साधुवाद दिया। मुख्य वक्त राकेश खटेड़ ने कहा कि गुरु की स्तुति करना ठीक है, उन्हें जानना अच्छा है, लेकिन गुरु की मानना सबसे बड़ी बात है। उससे ही हम अपने जीवन को उत्कृष्ट बना सकते हैं।
इससे पूर्व नमस्कार महामंत्र से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। स्थानीय अमीजिकरै, अरुम्बाकम, शैनॉय नगर, सुलयमेड तेरापंथ श्रावक समाज की महिलाओं ने मंगलाचरण किया। स्थानीय समिति अध्यक्ष तेजराज पुनमिया ने स्वागत स्वर प्रस्तुत किया। तेरापंथ सभा मंत्री अशोक खतंग, माधावरम ट्रस्ट बोर्ड प्रबंधन्यासी घीसूलाल बोहरा, महिला मण्डल अध्यक्षा लता पारख, तेयुप अध्यक्ष दिलीप गेलड़ा, अभातेममं सदस्या दीपा पारख इत्यादि ने अपने आराध्य की अभिवन्दना में अभिव्यक्ति दी। नेहल पुनमिया ने मुख्य अतिथि का परिचय प्रस्तुत किया। तेरापंथ महिला मण्डल ने गीतिका एवं कन्या मण्डल ने महाश्रमण अष्टकम से स्तुति की। सुमन चोरड़िया ने गुरु महाश्रमणजी की तपो:साधना में अपनी तप भेंट करते हुए आठ दिन की तपस्या का साध्वीश्री से प्रत्याख्यान किया। उत्तमचन्द कोठारी ने आभार व्यक्त किया। अभिवन्दना समारोह का संचालन संजय भंसाली ने किया। त्याग-प्रत्याख्यान एवं मंगल पाठ के साथ कार्यक्रम परिसम्पन्न हुआ।