ज्ञान को आचरण में लाने के लिए चाहिए भक्ति का पुल : आचार्यश्री महाश्रमण
जिनशासन प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान कराते हुए फरमाया कि आदमी के जीवन में ज्ञान का बहुत महत्व है, तो आचरण का भी बहुत महत्व है। ज्ञान है और सदाचार नहीं है, तो जीवन में एक बड़ी कमी है। आचरण अच्छा है, पर ज्ञान की दृष्टि से कमजोर है, तो वह भी एक कमी हो सकती है। जीवन में अहिंसा-ईमानदारी आदि अच्छे आचरण हैं तो कई बार ज्ञान थोड़ा होने पर भी आदमी का जीवन अच्छा चल सकता है और वह सफलता भी प्राप्त कर सकता है।
ज्ञान और आचरण के बीच में एक तत्त्व है- भक्ति अथवा आस्था। यह एक प्रकार का पुल है। जैसे नदी के दोनों किनारों को जोड़ने के लिए पुल बनाया जाता है, वैसे ही ज्ञान को आचरण में लाने के लिए भक्ति का पुल चाहिये। जैसे ईमानदारी को ज्ञान से जान तो लिया पर उसके प्रति आस्था नहीं होगी तो वह ईमानदारी आचरण में नहीं आ पायेगी। ज्ञान के आचरण में नहीं आने के दो कारण हो सकते हैं- आकर्षण और सामर्थ्य की कमी। भक्ति आराध्य के प्रति भी हो सकती है, तो सिद्धान्त, यथार्थ और आगम-शास्त्रों के प्रति भी भक्ति हो सकती है। बहुमान और भक्ति भीतरी हो, दृढ़ आस्था हो। ऊपरी मन से कहना भक्ति नहीं है। दोनों में बड़ा अन्तर है।
हमारे आराध्य के प्रति अंतरंग भक्ति हो। अंतरंग भक्ति से भगवान से साक्षात्कार हो सकता है। अंतरंग अनुराग होने पर व्यक्ति झूठ बोलने, चोरी करने से बच सकता है। भक्ति से ज्ञान की बात आचरण में आसानी से आ सकती है। भक्ति में शक्ति हो तो ऊंचाई की ओर आरोहण किया जा सकता है। आस्था हो तो आदमी थोड़ी कष्ट की स्थिति भी झेल सकता है। भक्ति के बिना संकल्प मजबूत नहीं होता। सपने भले पूरे नहीं हो पर संकल्प पूरे हो सकते हैं। सपने के साथ संकल्प मजबूत हो तो वे पूरे हो सकते हैं। हम अपने आराध्य के प्रति, अपने साध्य के प्रति अन्तर्मन में श्रद्धा, भक्ति रखें और सफलता प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ें। पूज्यवर के स्वागत में जिला परिषद् स्कूल से बाबा साहेब पाटिल और जितेंद्र भगीरथ पाटिल ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।