सज्जन लोग नहीं भूलते दूसरों के उपकार : आचार्यश्री महाश्रमण
मोक्षमार्ग के पथदर्शक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान कराते हुए फरमाया कि एक साधु होता है, वह यह अनुभव करे समणोहं-समणोहं। मैं श्रमण हूँ, मैं साधु हूं, संयत हूं, विरत हूं, प्रतिहत प्रत्याख्यात पाप कर्मा हूं। इसलिए मेरी हर प्रवृत्ति में श्रमणत्व रहना चाहिए। मैं चलूं तो साधु की गति से चलूं। साधु शांति से और मंद गति से चले, इससे ईर्या समिति की अच्छी आराधना हो सकती है। बोलने में भी साधुता हो, कटु भाषा न बोले, मिथ्या या पाप कर्मों का बंध करने वाली भाषा नहीं बोले। साधु का चलना, बैठना, सोना, खाना, बोलना ये सब श्रामण्य की विधि के अनुरूप होना चाहिए। हमारे जीवन में कर्त्तव्य का बड़ा महत्व होता है। साधु अपने कर्त्तव्य के प्रति जागरूक रहे। अपने कर्त्तव्य से च्युत हो जाना एक कमी की बात हो सकती है। आदमी को कर्त्तव्य के अकर्त्तव्य का ज्ञान होना चाहिए।
कुछ कार्य आदमी के लिए करणीय होते हैं, कुछ अकरणीय-त्याज्य होते हैं। कुछ कार्य करो तो ठीक, न करो तो भी ठीक होते हैं। कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य सबके समान नहीं होते हैं। जो लोग अपने कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य को नहीं जानते हैं, उनका कभी ऐसा अनिष्ट भी हो सकता है, जिसकी उन्होंने कल्पना ही न की हो। साधु का पहला कर्त्तव्य है- साधुत्व की संरक्षा करना। साधुत्व का सम्यक् पालन करने का प्रयास करे। बाकी कर्त्तव्य अलग-अलग हो सकते हैं। जो कर्त्तव्य हैं उनके प्रति जागरूकता रखनी चाहिए। गृहस्थों के अपने अलग-अलग कर्त्तव्य होते हैं। राजा का दायित्व होता है- सज्जनों की रक्षा करना, असद् लोगों पर अनुशासन करना और जो आश्रित प्रजाजन हैं, उनका भरण-पोषण करना। राजनेता राजनीति में आकर अपने कर्त्तव्य का पालन न करें तो वह अपने कर्त्तव्य से च्युत हो जाता है।
भगवान ऋषभ ने अपनी गृहस्थावस्था में सावद्य कार्य लोगों को सिखाया था, यह उनका कर्त्तव्य था, सांसारिक लौकिक सेवा थी। लोकानुकम्पा के दो अर्थ हो सकते हैं - जनता पर अनुकम्पा और दूसरा लौकिक अनुकम्पा। ऋषभ ने मानो कर्त्तव्य निर्वाह किया था। माता-पिता का अपने बच्चे के प्रति कर्त्तव्य होता है, तो बच्चों का भी माता-पिता के प्रति भी कर्त्तव्य होता है। सज्जन लोग दूसरों के किए हुए उपकार को भूलते नहीं हैं। इसी प्रकार बच्चे भी माता-पिता की सेवा करें, पूर्व सेवा को याद रखने वाले, कर्त्तव्य पालने वाले, मां-बाप की सेवा करते हैं। हम अपने कर्त्तव्य के प्रति यथौचित्य जागरुक रहें। पूज्यवर के स्वागत में हर्षित विद्या मंदिर के प्रमोद चौधरी तथा वैद्य किशोर सोलंकी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनिश्री दिनेशकुमारजी ने किया।